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________________ श्री प्रानन्दघन पदावली-३३ नहीं है। कोई स्वयं को अमर मत मान लेन।। मनुष्यों के सिर पर काल घूमता है। वह मनुष्यों के प्रारण का अपहरण करने में पाव घड़ी का भी विलम्ब नहीं करेगा। अतः चेतना चाहो तो चेत जायो। मस्तक पर पगड़ी बाँधने का तात्पर्य ही यह है कि वह हर दम यह जानता है कि काल मेरे सिर पर है। इसलिए हे घड़ियाली ! तेरे घड़ियाल बजाने का अब कोई प्रयोजन नहीं है। श्रीमद् अानन्दघनजी कहते हैं कि इस जगत् में पाव घड़ी जीने का भी भरोसा नहीं है। कौन जाने किस समय, कहाँ, कैसी स्थिति में प्राण चले जायेंगे, यह बात मनुष्य नहीं जानते । अतः मृत्यु से पूर्व धर्म-पाराधना कर लेनी चाहिए। हे आत्मन् ! तू सचेत हो जा। हे घड़ियाली ! तू तो मात्र समय बताने की ही युक्ति जानता है, परन्तु तुझे तनिक भी ऐसी बुद्धि नहीं है जिससे तू समय का सदुपयोग कराने वाली ज्ञान-घड़ी को, जो अन्तर में ही है, बता सके। अन्तर में जो काल नापने की अकलकला है उसे तू नहीं जान सकता। मुझे तो आत्मा के ज्ञानादि गुणों को घड़ियाल प्रिय लगती है। यह घड़ी आत्मानुभव रस से भरी हुई है। इसमें अन्य कोई विजातीय वस्तु राग-द्वेष आदि का समावेश नहीं हो सकता। अतः यह अन्तर की घड़ी ही श्रेष्ठ है। श्री प्रानन्दघनजी कहते हैं कि अन्तर के घड़ियाल में आनन्द का समूह व्याप्त है। बाह्य घड़ियाल में प्रानन्द प्रतीत नहीं होता। अतः हे घड़ियाली! तू बाह्य घड़ियाल छोड़ कर अन्तर को ज्ञानादि गुण-युक्त घड़ी में प्रेम रख। वह घड़ियाल अनुभवरस से परिपूर्ण है और अनन्त आनन्द से युक्त है। उसकी अकलकला है। तू. तेरी सहज मूल अानन्द रूप घड़ियाल को बजा। श्रीमद् प्रानन्दघनजी कहते हैं कि इस अचल, अबाधित, अानन्ददायिनी घड़ी की कला को कोई बिरला ही प्राप्त कर सकता है। (राग-बिलावल) जीउ जाने मेरी सफल घरी । सुत वनिता धन यौवन मातो, गर्भतणी वेदन विसरी ॥ जीउ० ॥ १ ॥
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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