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________________ श्री आनन्दघन पदावली - ३३३ = जतन = उपाय । शब्दtर्थ- -न बाजे बाज नहीं आता, मानता नहीं है । पयाले = =पाताल | थोथुं=खाली । प्रांकू = अंकुश लगाऊँ । पिण= परन्तु | हटकूं= सालो = - पत्नी समरथ = बलवान । झेले=पकड़े । वासर = दिन । ऊखाणो = 1= कहावत । रोकूं । का भाई । ठेले = दूर हटाता है । दुराराध्य = दुःसाध्य | मति = बुद्धि | गयरण = गगन । वयरीडु = शत्रु | वाकू = टेढ़ा | व्याल= साँप | स्तवन के सम्बन्ध में विशेष - इस पद में ऐसा प्रतीत होता है कि श्रीमद् श्रानन्दघनजी केवल मन की प्रबलता तथा दुराराध्यता दिखलाकर रह गये हैं, उस पर विजय पाने का मार्ग नहीं बताया । परन्तु सूक्ष्म दृष्टि से सोचें तो रहस्य स्पष्ट हो जाता है । वे समस्याओं में उलझकर ही नहीं रह जाते, वे तो अन्त में उनका समाधान कर ही लेते हैं । उन्होंने रहस्यमय ढंग से समाधान दिया है कि चाहे शास्त्र पढ़ो, योगसाधना करो, तप करो, ध्यान का अभ्यास करो, यह मन तब तक वश में नहीं होता जब तक भक्ति का दीप प्रज्वलित न हो । मन को वश में करने के लिए समर्थ महापुरुष का आश्रय लेना चाहिए श्री कुन्थुनाथ वैसे ही मन - विजेता हैं । अतः अपनी दशा का वर्णन करके कहा है कि मुझे भी वैसा ही मन - विजेता बना दो । । - भावार्थ हे कुन्थुनाथ प्रभो ! मेरा मन मानता नहीं है । यह स्तवना के समय वाणी के स्वर में स्वर न मिलाकर इधर-उधर क्यों भटकता है ? मैं जैसे-जैसे उसे तन्मय करने का प्रयत्न करता हूँ, वैसेवैसे यह मुझसे दूर भागता है ।। १ ।। मन-विजेता श्रीमद् श्रानन्दघन जी योगिराज के चरणारविन्द में कोटि-कोटि वन्दन ! दुकान : 20153 घर : 20353 * मैसर्स रामकिशोर काबरा एण्ड कम्पनी x ( कमीशन एजेण्ट ) 28, नई अनाज मण्डी, मेड़ता सिटी - 341510 (राज.)
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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