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________________ श्री श्रानन्दघन पदावली - ३२३ धरम धरमं करतो जग सहु फिरे, धर्म न जाणे हो ममं । धरम जिनेसर चरण ग्रह्यां पछी, कोई न बंधे हो कर्म । धरम० ।। २ ॥ प्रवचन अंजन जो सद्गुरु करे, देखे परम हृदय नयन निहालै जग-धरणी, महिमा मेरु दौड़त दौड़त दौड़त दौड़ियो, जेती मननी प्रेम प्रतीति विचारो ढुकड़ी, गुरुगम लीज्यो एक पखी किम प्रीति परवडे, उभय हूँ रागी मोहे फंदियो, तू निरमल गुणमरिण रोहण भू-धरा, धन ते नगरी धन वेला घड़ी, निधान । समान । धरम० ।। ३ ॥ हो दौड़ । हो जोड़ | धरम० ।। ४ ॥ मिल्या होय संधि । नीरागी नीरागी निरबंध | धरम० ।। ५ ॥ परम निधान प्रगट मुख अगले, जगत उलंघी हो जाय । ज्योति बिना जोवो जगदीशनी, अंधो अंध पुलाय मुनिजन मात-पिता धरम० ।। ६ ।। मानस हंस । कुल वंश | धरम० ।। ७ ॥ मन मधुकर वर कर जोड़ी कहे, पद-कज निकट निवास । घननामी 'श्रानन्दघन' सांभलो, ए सेवक अरदास । धरम ० ।। ८ ॥ बाधा । म= शब्दार्थः - रंग सु = आनन्द से, आत्म भाव में लीन होकर । = नहीं | अम्ह = हमारी | रहस्य | पछी = पीछे | धरणी = स्वामी | एकांगी । उमय = दोनों | पर्वत । कुलवट=कुल परम्परा । ढकड़ी = समीप | पुलाय = दौडना । कज = कञ्ज कमल । अरदास = प्रार्थना भंग = मर्म = एकपखी = रोहण - रोहणाचल । भूधरा ।
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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