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________________ योगिराज श्रीमद् श्रानन्दघनजी एवं उनका काव्य- ३१४ परिणामी चेतन परिणामो, ज्ञान करम फल भावी रे । ज्ञान करम फल चेतन कहिये, लीजो तेह मनावी रे । वासु० ।। ५ ।। श्रातमज्ञानी श्रमण कहावे, बीजा तो वस्तु-गते जे वस्तु प्रकाशे, 'प्रानन्दघन' द्रव्यलिंगी रे | संगी रे | मत वासु० ।। ६ ।। शब्दार्थ : --- घणनामी = अनेक नाम वाले । परणामी = शुद्धात्मं गुण में परिणमन करने वाले । कामी = कामना करने वाले । संग्राहक = सत्यस्वरूप ग्रहण करने वाले । दुभेद = दो भेद विभाग | परिणामी = परिणामी भाव वाले । अनुसरिये = अनुसरण करें । श्रमण = साधु, बीजा = अन्य । द्रव्यलिंगी = वेशधारी | . अर्थ - भावार्थ:-श्री वासुपूज्य प्रभु तीनों लोकों के स्वामी हैं और वे अनेक नामों वाले हैं। उन्होंने श्रात्मा को परिणामी, साकार, निराकार, चैतन्य स्वरूप, कर्म का कर्त्ता और फल का भोक्ता कहा है ।। १ ।। अभेद को ग्रहण करने वाले दर्शनोपयोग को निराकारोपयोग और भेद को ग्रहण करने वाले ज्ञानोपयोग को साकारोपयोग बताया है । इस तरह चेतना के दर्शन एवं ज्ञान दो भेद हैं । इस चैतन्य वस्तु से ही श्री वासुपूज्य स्वामी के अनन्य उपासक अध्यात्म योगी श्रीमद् श्रानन्दघनजी के चरणों में शत-शत नमन । 20296 दुकान * महावीर ट्रेडिंग कम्पनी जनरल मर्चेण्ट एण्ड कमीशन एजेण्ट D-8, कृषि उपज मण्डी, मेड़ता सिटी (राज.) 341510
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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