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________________ योगिराज श्रीमद् प्रानन्दघनजी एव उनका काव्य-२६० (प्रेम) और अखेद है। भगवान श्री संभवनाथ की भक्ति के लिए साहस, प्रेम और आनन्द की अत्यन्त आवश्यकता है। इन तीनों गुणों के बिना जीवन के किसी भी क्षेत्र में मनुष्य सफल नहीं हो सकता। भय, ईर्षा एवं शोक मनुष्य के महान् शत्रु हैं। जब तक इन तीनों अंतरंग शत्रुओं पर विजय प्राप्त नहीं करली जाये तब तक मनुष्य भगवद्-भक्ति का अधिकारी नहीं हो सकता ।। १ ।। ___ मानसिक चंचलता से भय, अरुचि से द्वेष और किसी-किसी प्रवृत्ति में निराश होने से खेद उत्पन्न होता है। ये तीनों दोष अज्ञान के चिह्न हैं। सात महा भयों से चित्त चंचल होता है और उनके विसर्जन से अभय प्राप्त होता है। धार्मिक कार्यों में रुचि ही अद्वेष है, मैत्री भाव है और सत्प्रवृत्तियों में जागरूक होकर लगे रहना ही अखेद है; अर्थात् परमार्थ-वृत्तियों में रस लेते हुए नहीं थकना ही अखेद है। अतः भय, द्वेष और खेद को त्याग कर अभय, अद्वेष और अखेद को ग्रहण करना ही श्री संभवनाथ भगवान की परम सेवा है ।। २ ।। जिसने चरमकरण, अपूर्वकरण तथा अनिवृत्तिकरण अर्थात् .. अभूतपूर्व शुभ परिणाम, हेयोपादेय का ज्ञान तथा मिथ्यात्व के उदय को दूर कर सम्यक्त्व प्राप्ति के योग्य शुभ परिणाम कर लिया हो अर्थात् प्रथम गुणस्थान से चौथा गुणस्थान प्राप्त कर लिया हो और जिसकी भव-परिभ्रमण की अवधि पूर्णता पर हो, उसके भय, द्वेष, खेद आदि दोष दूर हो जाते हैं। उसके दिव्य नेत्र खुल जाते हैं और उसे प्रवचन वाणी (सिद्धान्त वाक्यों) की प्राप्ति हो जाती है। उसे जिनेश्वर भगवान की वाणी पर पूर्ण श्रद्धा हो जाती है ॥ ३ ॥ हे मानव ! तू आत्म-कल्याण कर। यह जीवन क्षण-भंगुर है। इसे अकारथ मत जाने दे । ... (0) 20167 UPR) 20130 ४ श्री जय नृसिंह एण्ड कम्पनी ४ ग्रेन मर्चेन्ट एण्ड कमीशन एजेन्ट 26, कृषि मण्डी, मेड़ता सिटी (राज.) 341510
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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