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________________ योगिराज श्रीमद् श्रानन्दघनजी एवं उनका काव्य- २६८ ( ३५ ) मिलरण रो बारणक श्राज बण्यो छे जी । मि० ॥ देरागी जेठानी म्हारी, धंधे लागी निणदल पुत्र जिण्यो छे जी । मि० ।। १ ।। सास करत म्हारी पान पंजीरी, प्राडो पडदो तथ्यौ छे जी । मि० ।। २ ।। श्रानन्दघन पिया भले ही पधारे, मन में उमाहो घरणो छे जी । मि० ॥ ३ ॥ शब्दार्थ – बारणक= वेष, अवसर । निरणदल = ननद । जिण्यो = जन्म दिया । पान पंजीरी = खाने का मिष्टान्न । ( ३६ ) सुरण चरखा वाली चरखो बोले तेरो हुं हुं हुं जल में जाया थल में उपना, बंस गया नगर में आप । एक अचंभा ऐसा देखा, बेटी जाया बाप रे ।। सुरण ० ।। १ ।। भाव भगति की रुई मंगाई, सुरत ज्ञान पींजारो पींजरण बैठो, तांत सासु मरेजो नगद एक बुढ़ी नहिं मरे पींजावरण चाली । रणकाई रे । पकड़ सुरण ० ।। २ ।। आप | मिले तो, बेटी जाया बाप रे । बावल मेरो ब्याव कीजो है, अरणजाण्योवर प्रणजाण्यो वर नहीं . सुरण० ।। ३ ।। मरेजो, परण्यो बी मर जाय । तो तिरण चरखो दीजो बताय रे । चरखो मारो रंग रंगीलो, पूरणी है कातरण वाली छैल छबीली, गिन-गिन काढे सुरण ० ।। ४ ।। गुलजार । तार रे 1 सुरण ० ।। ५ ।।
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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