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________________ योगिराज श्रीमद् आनन्दघनजी एवं उनका काव्य-१५० विवेचन--आत्मा अनन्त शक्तिशाली है। आत्मा मोहराजा से युद्ध करके उसे पराजित करता है। मोहराजा की सेना भी अत्यन्त शक्तिशाली है। मोहनीय कर्म की अट्ठाईस प्रकृति है। मोहनीय कर्म के दो भेद हैं –दर्शन मोहनीय और चारित्र मोहनीय। दर्शन मोहनीय के तीन भेद हैं -सम्यक्त्व मोहनीय, मिश्र मोहनीय और मिथ्यात्व मोहनीय। जो सम्यक्त्व में व्याकूलता करता है वह सम्यक्त्व मोहनीय कहलाता है। जिसमें अन्तर्मुहूर्त तक जैनधर्म के प्रति रुचि भी नहीं और द्वेष भी नहीं वह मिश्र मोहनीय कहलाता है। जीव को अजीव मानना, धर्म को अधर्म मानना आदि दस प्रकार के मिथ्यात्व को मिथ्यात्व मोहनीय कहते हैं। चारित्र मोहनीय के पच्चीस भेद हैं। अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ, अप्रत्याख्यानी क्रोध, मान, माया और लोभ तथा प्रत्याख्यानी क्रोध, मान, माया और लोभ और संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ-ये सोलह कषाय हैं तथा हास्य, रति, अरति, भय, शोक दुगुच्छा एवं स्त्रीवेद, पुरुषवेद एवं नपुंसक वेद ये नौ नोकषाय है सब मिलकर चारित्र मोहनीय की पच्चीस प्रकृतियाँ तथा दर्शन मोहनीय की तीन सम्मिलित करने पर मोह की अट्ठाईस प्रकृतियाँ रूपी योद्धा अनादि काल से आत्मा के साथ युद्ध करते हैं। शुद्ध चेतना अपने स्वामी को कहती है कि अब तू अपनी अशुद्ध परिणति रूप कालिमा का त्याग करके मोह की सेना को जीत ले । बन्ध, उदय, उदीरणा एवं सत्ता में से मोहनीय कर्म की प्रकृतियों को उड़ा दे, विलम्ब मत कर । अर्थ -चेतना अपने स्वामी को कहती है कि आप तीक्ष्ण रुचि रूपी नंगी तलवार निकाल लो और मोह रूपी शत्रु को परास्त कर दो। यदि वेगपूर्वक आक्रमण करेंगे तो मोह को परास्त करने में दो घड़ी भी नहीं लगेगी और आपको आधि, व्याधि एवं उपाधि रहित निश्चल केवलज्ञान प्राप्त हो जायेगा। केवलज्ञान सत्य-असत्य का निर्णायक सबसे बड़ा न्यायाधीश है, जिसे प्राप्त करने पर मोक्ष रूपी पवित्र स्थान प्राप्त होता है ॥२॥ विवेचन-चेतना अपने स्वामी चेतन को कहती है कि आप मोहराजा के योद्धाओं को मार भगानो क्योंकि जो अपने शत्रुओं की उपेक्षा करता है वह मूर्ख गिना जाता है। यदि आप शूरता से युद्ध करेंगे तो कच्ची दो घड़ी में आप मोह रूपी शत्रु का नाश कर देंगे। मोह-शत्रु का नाश करने पर केवलज्ञान-प्राप्ति के साथ शिव-दरगाह अर्थात् मुक्ति को आप प्राप्त कर लेंगे।
SR No.002230
Book TitleYogiraj Anandghanji evam Unka Kavya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNainmal V Surana
PublisherSushil Sahitya Prakashan Samiti
Publication Year1997
Total Pages442
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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