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________________ ७१ मासिकी भिक्षु प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार को चार भाषाएँ बोलना कल्पता "है, यथा १ याचनी, २ पृच्छनी, ३ अनुज्ञापनी और पृष्ठ - व्याकरणी । आयारदसा विशेषार्थ - १ दूसरे से आहार, वस्त्र, पात्र आदि मांगने के लिए बोलना " याचनी" भाषा है | २ शंका का समाधान करने के लिए गुरु आदि से प्रश्न करना " पृच्छनी" भाषा है । अथवा किसी व्यक्ति से मार्ग पूछना "पृच्छनी" भाषा है । ३ गुरु आदि से गोचरी आदि की आज्ञा लेने के लिए बोलना, अथवा शय्यातर ( गृहस्वामी) से स्थानादि की आज्ञा लेने के लिए बोलना "अनुज्ञापनी" भाषा है । ४ किसी व्यक्ति द्वारा प्रश्न किए जाने पर उत्तर देने के लिए बोलना "पृष्ठ - व्याकरणी" भाषा है । प्रतिमा - प्रतिपन्न अनगार को इन चार भाषा के अतिरिक्त अन्य भाषा बोलना नहीं कल्पता है । सूत्र ६ मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स कप्पइ तओ उवस्सया पडिलेहित्तए, तं जहा १ अहे आराम - गिहंसि वा २ अहे वियड - हिंसि वा ३ अहे रुक्खमूल - हिंसि वा मासिकी भिक्षु प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के उपाश्रयों का प्रतिलेखन करना कल्पता है, यथा १ अधः आरामगृह – उद्यान में अवस्थित गृह, २ अधः विवृतगृह = चारों ओर से अनाच्छादित गृह, ३ अधः वृक्षमूलगृह = वृक्ष के नीचे या वृक्ष के नीचे बना गृह ।
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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