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________________ ३० १ उवगरण - उप्पायणया, ३ वण्ण-संजलणया, इस प्रकार के गुणवान् अन्तेवासी शिष्य की यह चार प्रकार की विनय प्रतिपत्ति होती है । जैसे— २ साहिल्ला, ४ भार - पच्चोरुहणया । १ उपकरणोत्पादनता - संयम के साधक वस्त्र - पात्रादि का प्राप्त करना । २ सहायता अशक्त साधुओं की सहायता करना । ३ वर्ण संज्वलनता - गण और गणी के गुण प्रकट करना । ४ भारप्रत्यवरोहणता - गण के भार का निर्वाह करना । सूत्र २१ प्र० - से किं तं उवगरण - उप्पायणया ? उ० – उवगरण - उप्पायणया चउव्विहा पण्णत्ता, ३ परितं जाणित्ता पच्चद्धरित्ता भवइ, ४ अहाविहि संविभत्ता भवइ । से तं उवगरण उप्पायणया । १ अणुप्पण्णाणं उवगरणाणं उप्पाइत्ता भवइ, २ पोराणाणं उवगरणाणं सारक्खित्ता संगवित्ता भवइ, छेदत्ताणि जहा सूत्र २२ प्रश्न - भगवन् ! उपकरणोत्पादनता क्या है । उत्तर - उपकरणोत्पादनता चार प्रकार की कही गई है । जैसे १ अनुत्पन्न उपकरण उत्पादनता नवीन उपकरणों को प्राप्त करना । २ पुरातन उपकरणों का संरक्षण और संगोपन करना । ३ जो उपकरण परीत (अल्प ) हों उनका प्रत्युद्धार करना अर्थात् अपने गण के या अन्य गण से आये हुए साधु के पास यदि अल्प उपकरण हो, या सर्वथा न हो तो उनकी पूर्ति करना । ४- शिष्यों के लिए यथायोग्य विभाग करके देना । यह उपकरणोत्पादनता है । प्र० - से किं तं साहिल्लया ? उ०- साहिल्लया चउव्विहा पण्णत्ता । तं जहा
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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