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________________ afr विशेषार्थ - इस पर्युषणा कल्प के सम्बन्ध में आचार्य पृथ्वीचन्द्र के टिप्पण में और कल्पसूत्र चूर्णी में इस आशय का कथन है कि अतीत में इस पर्युषणाकल्प का श्रवण तथा वाचन केवल श्रमण समुदाय ही करता था वह भी रात्रि के प्रथम प्रहर में । अर्थात् सबके सामने वाचन करने का स्पष्ट निषेध था । यदि कोई श्रमण किसी गृहस्थ, अन्य तीर्थिक या अवसन्न (शिथिलाचारी) संयति के सामने कल्पसूत्र का वाचन कर देता वह संवास, संमिश्रवास, और शंकादि दोषों का सेवी माना जाता । उसे चार गुरु तथा आज्ञा भंगादि दोष का प्रायश्चित्त दिया जाता । कल्पसूत्र का सभा (चतुर्विध संघ ) के समक्ष सर्व प्रथम वाचन आनन्दपुर ध्रुवसेन राजा के पुत्र-शोक की विस्मृति के लिए किसी चैत्यवासी परम्परा के श्रमण ने किया था, किन्तु विज्ञ पाठक यह देखे कि स्वयं भगवान महावीर चतुविध संघ के समक्ष पर्युषणाकल्प के सूत्रार्थों का हेतु कारण सहित विशद विवेचन किया था । इसलिए पूर्वोक्त टिप्पन एवं चूर्णी के कथन का औचित्य कैसे सिद्ध हो सकता है । पर्युषणा कल्पदशा समाप्त १३६
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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