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________________ आयारदसा १०५ सूत्र ३८ वासावासं पज्जोसवियस्स' पाणि-पडिग्गहियस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ अगिहंसि पिंडवायं पडिगाहित्ता पज्जोसवित्तए। पज्जोसवेमाणस्स सहसा बुट्टिकाए निवइज्जा, देसं भुच्चा देसमादाय से पाणिणा पाणि परिपिहित्ता उरंसि वा गं निलिज्जिज्जा, कक्खंसि वा णं समाहडिज्जा, अहाछन्नाणि लेगाणि वा उवागच्छिज्जा, रुक्खमूलाणि वा उवागच्छिज्जा, जहा से पाणिसि दए वा, दगरए वा, दगफुसिया वा नो परिआवज्जइ ।८/३८ वर्षावास रहने वाले पाणिपात्रग्राही भिक्षु को घर के बिना अनाच्छादित स्थान पर आहार ग्रहण करना नहीं कल्पता है। कदाचित् अनाच्छादित स्थान में वह आहार लेने लगे और उस समय अकस्मात् वर्षा आ जाए तो हाथ में बचे हुए शेष आहार को हाथ से ढक कर वक्षःस्थल के नीचे छिपाए या कोख में दबाए, तथा तत्काल आच्छादित लयन में या वृक्ष के नीचे चला जाए जिससे हाथ में रहे हुए आहार पर पानी, पानी के कण (फुहार) और पानी के सूक्ष्म कण (धुंअर) न गिरे। जब जल बरसना बन्द हो जाय तब शेष भोजन खाकर अपने स्थान को जाना चाहिए। पतद्ग्रहधारि स्थविर-कल्पिकस्य आहार विधि-रूपा त्रयोदशी समाचारी सूत्र ३६ वासावासं पज्जोसवियस्स पडिग्गह धारिस्स भिक्खुस्स नो कप्पइ वग्धारिय बुट्टिकायंसि गाहावइकुलं भत्ताए वा, पाणाए वा, निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा। ___ कप्पइ से अप्पवुट्टिकायंसि''संतरुत्तरंसि गाहावइ कुलं भत्ताए वा, पाणाए वा, निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा । ८।३६ तेरहवीं स्थविर कल्प-आहार-रूपा समाचारी वर्षावास रहने वाले पात्रधारी भिक्षु को निरन्तर विपुल वर्षा होने पर गृहस्थों के घरों में भक्त-पान के लिए निष्क्रमण-प्रवेश करना नहीं कल्पता है। . किन्तु रुक-रुककर अल्प वर्षा होने पर गृहस्थों के घरों में भक्त-पान के लिये निष्क्रमण-प्रवेश करना कल्पता है ।
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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