SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीवतचे पर्याप्तस्वरूपवर्णनम. ( ३९ ) होवाथी समाप्तिमा अनुक्रमे अधिक अधिक काळ लागे छे. ए भावार्थ श्रीतत्वार्थ सूत्रमाथी आगळ कहेवाशे. शंका- - प्रथमनी त्रण पर्याप्तिओ सर्व जीवो अवश्य पूर्ण करे अने शेषपर्याप्तिओ करे अथवा न करे तेनुं शुं कारण ? उत्तर - जीव आ भवमां परभवनं आयुष्य बांध्या पछी अन्तमुहूर्त आ भवमां रही त्यारबाद मरण पामीने परभवमां उत्पन्न थइ शके, अने आयुष्यनो बंध इन्द्रियपर्याप्ति पूर्ण कर्या विना न थाय एवो नियम छे, माटे प्रथमनी त्रण पर्याप्तिओ पूर्णकरीने चोथी पर्याप्ति ना चालु काळमां (असमाप्त. काळमां ) अंतर्मुहूर्तसुधी आयुष्यनो बंध करी (बांधी) तदनंतर पुनः अन्तर्मुहूर्त्त जीवित भोगवी मरण पामे त्यांसुधी पण ए जीवनी चोथी पर्याप्ति पूर्ण थइ शकती नथी. माटे सर्वे पर्याप्ता जीव पण प्रथमनी ऋण पर्याप्ति पूर्ण करे ज एवो नियम छे, अनं शेषपर्याप्तिओ माटे एवो नियम नथी. या जीवने केटली पर्याप्तिओ होय ? पूर्व कहेली ६ पर्याप्तिओमांथी सर्व एकेन्द्रिय जीवोने प्रथम - नी ४ पर्याप्ति के द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, अने चतुरिन्द्रियजीवोने प्रथमनी ५ पर्याप्ति, तेमज असंज्ञि ( सम्मूच्छिम ) पंचेन्द्रियने प्रथमनी ५ पर्याप्ति, अने संज्ञिपंचेन्द्रियने ६ पर्याप्ति होय छे. ए प्रमाणे सामान्यथी गाथाने अनुसारे जीवोमां पर्याप्तिओ कही, अने विशेपथी आ प्रमाणे सर्व लब्धपर्याप्त जीवोने ३ पर्याप्तिओ प्रथमनी होय छे. जेथी सर्व अपर्याप्त सम्मूर्च्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यच, समूच्छिम मनु १ लब्धि पर्याप्त तथा अपर्याप्त वगरेनुं स्वरूप आगळ कहवाय छे.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy