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________________ ॥ मोक्षतवनवद्वारस्वरूपम् ॥ (३२१) ववाने अथवा तो सत्य बोलतां आ वखते मारुं अपमान तिरस्कार वगैरे थशे, ए कारणथी पण ते वखते असत्य बोले छे. माटे असत्य भाषणमां मान ए कारण छ । ए प्रमाणे मायाथी ने लोभथी पण असत्य बोले छे, तेमज कोइ भयथी असत्य बोले छे, ने केटलाएक हांसी-मरकरी--कुतूहल इत्यादि माटे असत्य बोले छे तेथी भय अने हास्य ए पण असत्य भाषणमां कारण छे ए रीते क्रोध--मान-माया--लोभ-भय हास्य-ए ६ असत्यनां कारण छे तेमज केटलाएक जीवो ने ए ६ मांगें कोइपण कारण होतुं नथी अने मनमां सत्य बोलवानोज विचार होय छतां ते बाबतमा अजाणपणु होय छे, तेथी असत्य बोले छे अने कोइवार ज्ञात पदार्थना संबन्धमां पण अनाभोगे (उपयोग रहित पणे) असत्य बोली जबाय छे, माटे असत्य भाष. णमा अज्ञान अने अनाभोग कारण छे, ए प्रमाणे असत्य भाषणनां ८ कारणोमांचें एक पण कारण भगवानने छे नहि कारणके भगवान् कषाय रहित छे माटे क्रोधादि ६ कारण न होय, अने भगवान् सर्वज्ञ छे माटे अज्ञान अने अनाभोग पण कारण न होय, तो हवे एवं कयु कारण होइ शके ? के जेथी भगवानने असत्य बोलचा. नी जरुर पडे ! माटे सर्वज्ञ अने कषाय रहित एवा जिनेश्वरोए जे जे वचनो कयां छे तेमांनु एक पण वचन असस्य नयी पण सत्यज छे, एवा प्रकारनी दृढबुद्धि जेना मनमां होय ते निश्चल सभ्यक्त्व--दृढ सम्यक्त्व कहेवाय छे, अने जेओ सर्व वचमो सत्य माने पण एकज वचन असत्य माने तो तेवा जोवं ने पण सम्पकत्व होय नहि. जेम श्रीवी भगवाननो जमाइ जमालि भगवाननां सर्व वचन सत्य मानतो हतो पण कर्या कामनेज कयु कहेवाय, पण करखा मांडेलु कार्य ते कयु कहेवाय एम जे महावीर स्वामि क-. हे छे ते युक्तिव छं नथी एम एकज वचन असत्य मानवाथी ज.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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