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________________ ___ अवतरणः-हवे नवमा मोक्षतत्वनी प्रारंभ थाय छे, त्यां प्रथम आ गाथामां मोक्षना ९ भेद एटले नव छार कहेवाय छे. संतपयपरूवणया, दव्वपमाणं च खित्तफुसणा य । कालो अ अंतर भागो, भावे अप्पाब हू चेव ॥ ४३ ॥ __.. संस्कृतानुवादः । सत्पदप्ररूपणा, द्रव्य-प्रमाणं च क्षेत्रं स्पर्शना च । कालचान्तरं भागो, भावोऽल्पबहुत्वं चैव ॥ ४३ ॥ शब्दार्थःसंत-छता ( विद्यमान) । कालो-काळद्वार पय--पदनी | अन्तर-अन्तर (विरह) द्वार प्रवणया-प्ररूपणाद्वार भाग-भागद्वार , द्रव्वपमाणं-संख्या प्रमाणद्वार भाव-भावद्वार च-अने अप्पाबहुं--अल्पबहुत्वद्वार खित्त-क्षेत्रद्वार चेव-निश्चे फुसणा-स्पर्शनाद्वार गाथार्थः-१ सत् ( विद्यमान ) पदनी प्ररुपणानुं द्वार-२ द्रव्य (संख्या) प्रमाणद्वार-३ क्षेत्रद्वार-४ स्पर्शनाद्वार-५ काळद्वार--६ अन्तरद्वार-७ भागद्वार--८ भावद्वार ने ९ मुं निश्चय अल्पबहुत्वद्वार (ए ९ द्वार अथवा ९ भेद मोक्षतत्वना छे.) ...
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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