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________________ (२७८) ॥श्री नवतचविस्वरायः ॥ राजाने देखी शके नहिं तेम आत्मानो देखवानो स्वभाव के छतां पण दर्शनावरण कर्मना उदयथा पदार्थ या विषयोने देखी शके नहि. वेदनोय कर्म मद्यवडे लेपायली तरवार अथवा खड्ग सरखं है, एटले मद्यवडे लेपायला तरवारन चाटतां प्रथम स्वाद लागे पण जाम कपावाथी परिणाम अत्यंत पाडा करनार थाय तेम शातावेदनोयने अनुभवतां परिणाम अत्यंत अशाताना अनुभव करवो पडे तेम वेदनीय कर्म जीवने पोद्र्गालक सुख अने दुःख बन्ने आपे छे. मोहनीय कर्म मदिरा सरखु छे, एटले मदिरा पीवाथो मनुष्य जेम परवश नन विवक रहित थवाथा हिताहित जाणी शकतो नयी, तेम जीव पण माहनीय कर्मना वशथा विकशून्य थतां आत्माने हितकर अन अहितकर छ ? ते जाणा शकता नथी. अर्थात् मदिरोन्मत्त जीव जन मान मा कहे ने बहुःपण कहे हाथीने हाथी कहे अने पाडो पण कहे. अथवा स्त्रीने स्त्री कहे ने मा पण कहे अने पाडाने पाडा कह अन हाथी पण कह,एम गमे तेम मनमां आवे तेम साचा जूठो बकवाद कर्या कर तम मोहनीय कमेथी उन्मत्त थयेलो जीव पण धर्मने धर्म कहे ने अधर्म पण कहे, अधमैने अधर्म कहे ने धर्म पण कह, एम साचो जूठो मनः काल्पत अर्थ बोल्या करे माटे मोहनीय कर्म ते खरेखर मदिरा सरखुज छे. ___आयुष्य कर्म बेडी (जेल) सरखु छ, एटले जेम जेलमां पूरा। यलो मनुष्य जेलमाथी छूटवा इच्छे तो पण छूटी शके नहि पर १ अहिं ५ निद्रा ते आत्मानी उत्पन्न थयेली दर्शनलधिने उपघात करनार [-रोकनार ) छे. ने चक्षुर्दर्शनावरणादि चार तो आस्मानी दर्शनलब्धिने मूळथीज हणनार छ [दर्शन कम्धिने उत्पनज थवा दे नहि. -इति कर्मप्रकृत्यायो
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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