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________________ ॥ षइद्रव्येषु परिणाम्यादिद्वारवर्णनम् ॥ (१४५) द्वार सूचना रूपे मात्र कयां छे त १२. द्वार कहेवार्नु तात्पर्य एके के-पूर्वोक्त छ द्रव्यमां परिणामी अने अपरिणामी द्रव्य कयां? पूर्वोक्त छ द्रव्यमा सजीव अने निर्जीव द्रव्य कयां ? इत्यादि वि. चार, ते आ पमाणे ॥६ द्रव्यमां 'परिणामी अने अपरिणामि ॥ परिणाम एटले एक अवस्था छोडीने बीजी अवस्थामा ज. धुं ते, श्री प्रज्ञापनाना परिणाम पदमा का छे के"परिणामो ह्यर्थान्तर-गमनं न च सर्वथा व्यवस्थानम् न च सर्वथा विनाशः, परिणामस्तद्विदामिष्टः॥१॥" अर्थ:--परिणाम एटले. अर्थान्तर-धर्मान्तरनी प्राप्ति, परन्तु सर्वथा ( एकान्ते ) एकज धर्ममा अवस्थान अथवा ते धर्मनी सर्वथा विनाश नहिं तेज बुद्धिमतोए परिणाम कहेलो के. जैम जीवनो परिणाम देव मटीने मनुष्य थयु, अने अजीवनो परिणाम स्थिरत्वादिधर्ममांथी गत्यादि धमां जवु ते. त्यां परिणाम सापान्यतः जीवपरिणाम अने अजीवपरिणाम एम बे प्रकारे है, तेमां पण जीवपरिणाम १० प्रकारनो छे. ते नीचे मुजब१ गतिपरिणाम--देवत्वादि चार गति ते. २ इन्द्रियपरिणाम--स्पर्शादि ५ इन्द्रियो ते. ३ कषायपरिणाम--क्रोधादि ४ कषाय, अथवा अनंतानुवं ___ध्यादि ४ कषाय के ४ लेश्यापरिणाम--कृष्ण लेश्यादि ६ लेश्याओ ५ योगपरिणाम--मनयोग-वचनयोग अने काययोग. १ परिणाम एटले स्वस्वभावमा परिणमवं ए अर्थथी तो छ ए द्रव्यं परिणामी कहेवाय, परन्तु अहिं आगळ कडेवाती गत्यादि परिणाम ग्रहण करवानो छे. . . .
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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