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________________ (९८) ॥ श्रीनवतत्वविस्तरार्थः ॥ ॥ जीवतत्त्व परिशिष्ट. ॥ - ॥ संसारी जीवना (जुदी जुदी अपेक्षाए ) भेद.॥ १ प्रकारना-चैतन्य लक्षण (उपयोग)वडे. ... २ प्रकारना-त्रस, स्थावर. वा व्यवहार, अव्यवहार. ३ प्रकारना-स्त्री, पुरुष, नपुंसकवेदी वा भव्य, अभन्य, जातिभव्य. ४ प्रकारना-देव, मनुष्य, तिर्यंच, नारक. वा ३ वेद, ४ अवेद. ५ प्रकारना--एकेन्द्रिय, दीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय. ६ प्रकारना-पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति, जसकाय. ७ प्रकारना-सूक्ष्मएके०, बाद एके०, द्वी०, त्री०, चतु०, असं ज्ञिपंचे०, संजिपंचे०. वा ६ लेश्य, १ अस्लेश्य. ८ प्रकारना--? पर्याप्त सूक्ष्मएकेन्द्रिय, ५ द्वीन्द्रिय, २ पर्याप्त सूक्ष्मएकेन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, ३ अपर्याप्त बादरएकेन्द्रिय, ७ चतुरिन्द्रिय, ४ पर्याप्त बादरएकेन्द्रिय, , ८ पंचेन्द्रिय. ९ प्रकारना-2 अंडज, २ रसज, ३ जरायुज, ४ स्वेदज, ५ सं मूर्छज, ६ पोतज, ७ उद्भदज, ८ औपपातिक (ए आठ प्रस अने), ९ स्थावर. अथवा ५ स्थावर, ३ विकले०, अने ? पंचेन्द्रिय. संभवे छे. छतां 'श्री द्रव्यलोकप्रकाश' विगेरेमा उच्छवास सहित आठ तथा 'वृहत्संग्रहणिवृत्ति' विगेरेमां वचनवल सहित नव प्राण कथा तेनो निर्णय श्रीबहुश्रुतगम्य जाणबो. अहिं अपर्याप्तजीवोने यथायोग्य श्वासोच्छ्वास,भाषा, अने मन सिवायना प्राण गणवा. उपर कह्या प्रमाणे ए स्ययोग्य द्रव्यप्राणोनो जे वियोग ते जीवनुं 'मरण' कहेयाय छे. कारणके जीव ज्यारे ए द्रव्यप्राण छोडी परभवमांजाय त्यारे ( जोवत्वपणे जीव जीवे ठे छतां ) मरण पाम्यो एम कहेवाय छे.
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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