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________________ ( ३५) शरण में आया व्यक्ति, जो सलाह पूछता है, बिना किसी प्रकार का भेद-भाव रखे और बिना किसी प्रकार की ई के वे ठोक-ठीक बतला देते हैं। वे यह नहीं देखते कि शरणागत शत्रु है या मित्र । युधिष्ठिर यह जानते थे कि दुर्योधन से मेरा युद्ध चल रहा है । मेरे भाई भीम और अर्जुन को हराने के लिए ही यह मुझ से सलाह पूछने आया है। इस समय यदि वे चाहते तो कोई ऐसी राय बतला सकते थे, जिससे स्वयं दुर्योधन अपना नाश अपने हाथ से कर लेता । किन्तु यूधिष्ठिर ने ऐसा न करके स्वच्छ हृदय से, सच्ची और लाभदायक सम्मति हो दी । ऐसा करने वाले, सत्यमति युधिष्ठिर के सत्यव्रत की जितनी प्रशंसा की जाय थोड़ी है । उक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि जो मनष्य सत्यमार्ग का पथिक है, वह अपने शत्रु की क्षति के लिए भी कभी झूठ का आश्रय नहीं लेता बल्कि आवश्यकता पड़ने पर, शत्रु यदि राय पूछे तो शत्रुता को दूर रख कर एक मित्र की तरह राय देता है । युधिष्ठिर को दुर्योधन ने कितने कष्ट दिये थे ? वह युधिष्ठिर को अपना कैसा भयंकर शत्रु समझता था। फिर भी युधिष्ठिर ने दुर्योधन से असत्य भाषण नहीं किया । दुर्योधन के अजेय होने पर, युधिष्ठिर की ही हानि थी क्योंकि उसे पराजित करने के लिए ही यह युद्ध हुअा था । लेकिन युधिष्ठिर ने ऐसे समय में भी सत्य को ही प्रधानता दी और अपनी हानि की कुछ चिन्ता न की । आज के लोगों पर, युधिष्ठिर जैसी कोई विपत्ति न होते हुए भी, वे असत्य को कितनी प्रधानता देते हैं और शत्रु से झूठ न बोलना तो दूर
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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