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________________ ( २४२ ) ८" 'वेश्या कामाग्नि की ज्वाला होती है जो रूप-ईन्धन से सजी रहती है, कामी लोग इस रूप ईन्धन से सजी हुई वेश्या नाम्नी कामाग्नि की ज्वाला में अपने यौवन और धन की आहुति देते हैं ।" तात्पर्य यह कि वेश्या - गमन भयंकर पाप है । वेश्यागामी पुरुष का अन्तःकरण इतना कलुषित हो जाता है कि वह अपने कुटुम्ब की स्त्रियों पर कुदृष्टि डालने में तथा मनुष्य हत्या एवं आत्म हत्या करने में भी नहीं हिचकिचाता । तीसरा प्रतिचार तीसरा अतिचार अनंगक्रीड़ा है । काम सेवन के लिए प्राकृतिक जो ग्रंग हैं, उनके सिवा शेष सब यंग, काम सेवन के लिए अनंग हैं, जो अंग काम सेवन के लिए अनंग हैं, उनसे काम क्रीड़ा करना, ग्रनंग-कीड़ा कहलाती है । जैसेगुदा-मैथुन, हस्त मैथुन, मुख-मैथुन कर्ण-मैथुन, कुचमर्दन, चुम्बन आदि । इन सब मैथुनों की विशेष व्याख्या न करके इतना ही कहा जाता है कि स्व- स्त्री से भी ऐसा मैथुन करने से व्रत में दूषण लगता है । इसलिये व्रतधारी को इस अतिचार से बचना चाहिये । चौथा प्रतिचार चौथा प्रतिचार पर विवाह करण है | आनन्द श्रावक की तरह अपनी स्त्री का नाम लेकर स्वदार सन्तोष-व्रत स्वीकार करने वाला केवल अपनी उसी स्त्री पर सन्तोष करने की प्रतिज्ञा करता है, जो प्रतिज्ञा करने के समय
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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