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________________ ( २२८ ) बुद्धि, धन, सौन्दर्य, दया, सहानुभूति और धर्म का नाशक एवं हिंसादि पापों में प्रवृत्त करने वाला है । ऐसा होते हुए भी बहुत से लोग इस पाप से माँस-मदिरा के पाप की तरह नहीं बचते । उपासक दशाङ्ग-सूत्र के ८ वें अध्ययन में महाशतक श्रावक का वर्णन आया है । महाशतक की स्त्री रेवती मांसभक्षिणी थी किन्तु महाशतक पर. ही अनुरक्त थी । इस कारण महाशतक ने यह विचारा होगा कि यदि मैं इसे त्याग दूंगा तो सम्भव है कि यह व्यभिचार का भयंकर पाप करने लगे । जान पड़ता है कि इसी विचार से महाशतक श्रावक ने मांस-भक्षिणी रेवती का त्याग. नहीं किया हो। इससे यह सिद्ध हुआ कि महाशतक की दृष्टि में व्यभिचार आदि मांस-भक्षण से अधिक नहीं, तो उसके समान ही पाप था । ६-पत्नी को सदाचारिणी रखने के लिये स्वयं सदाचारी बनो। बहुत से पुरुष, अपनी स्त्री से तो पतिव्रत पालन कराना चाहते हैं, उसे पर-पुरुष-गामिनी नहीं देखना चाहते, लेकिन अपने आपको परदार-गमन के लिए स्वतन्त्र समझते हैं । ऐसे लोग जान-बूझ कर बबूल बोते हैं और आम खाने की इच्छा रखते हैं। किसी नियम का पालन दूसरे से तभी कराया जा सकता है, जब स्वयं भी उसका पालन करे । जब तक स्वयं द्वारा किसी नियम का पालन न किया जावे, तब तक दूसरे से उस नियम का पालन कराने में सफलता
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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