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________________ ( २१२ ) के ब्याहे माता-पिता से हुआ है । हमें ऐसा लोकमत बनाने. की जरूरत है कि जिसमें बाल-विवाह असम्भव हो जाये । हमारी अस्थिरता, कठिन और अविरल श्रम से अनिच्छा, शारीरिक अयोग्यता, शान से शुरू किये गये हमारे कामों का बैठ जाना और मौलिकता का अभाव आदि आदि के मूल में मुख्यतः हमारा अत्यधिक वीर्यनाश हो है। गांधीजी आगे लिखते हैं कि 'जो मां-बाप अपने बच्चों की सगाई बचपन में ही कर देते हैं, वे उन बच्चों को बेचकर घातक बनते हैं । अपने बच्चों का लाभ देखने के बदले, वे अपना ही अन्धस्वार्थ देखते हैं। उन्हें तो आप बड़ा बनना है, अपनी जाति-बिरादरी में नाम कमाना है, लड़के का ब्याह करके तमाशा देखना है। लड़के का हित देखें तो उसका पढ़ना लिखना देखें, उसका जतन करें, उसका शरीर बनावें । घर गृहस्थी की खटखट में डाल देने से बढ़कर उसका दूसरा कौनसा वड़ा अहित हो सकता है ?' यदि यह कहा जावे कि धार्मिकता की दृष्टि से विवाह तो बचपन में कर दिया जाता है, लेकिन सहवास नहीं होता है; तो पहले यह कथन सर्वथा नहीं तो वहुत अंश में गलत है क्योंकि प्रायः विवाह समय में ही सहवास होना सुना जाता है । कदाचित् उस समय सहवास न होता हो, तो फिर बचपन में विवाह किस दृष्टि से किया जाता है ? ऐसे विवाह का विधान तो किसी भी धर्म के शास्त्र नहीं करते और ऐसे विवाह प्रत्यक्ष ही हानिप्रद हैं । बचपन में ब्याहे गये पति-पत्नी की अवस्था में विशेष अन्तर नहीं होता । जिस समय कन्या युवती मानी जाती है, उस समय उसका पति युवावस्था में पदार्पण भी नहीं कर पाता। बहू युवती
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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