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________________ ( १५२ ) है । ज्ञानियों के ज्ञान को भी वह ढांक देती है । इस काम के ठहरने की जगह इन्द्रिय, मन और बुद्धि है । यह इन्हें के सहारे ज्ञान को ढांक कर मनुष्य को मोहित करता है।' त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः । कामः क्रोधस्तथा लोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ॥ . (गीता अध्याय १६ ) "काम, क्रोध और लोभ, ये तीनों नरक के द्वार और आत्मा का नाश करने वाले हैं । इसलिये इन तीनों को त्याग देना चाहिये ।" इस प्रकार अब्रह्मचर्य की सबने निन्दा की है । परलोक-सम्बन्धी जो हानियां इससे होती हैं, उनका वर्णन तो किया ही गया है लेकिन इस लोक में भी इससे अनेक हानियां हैं । इससे होने वाली समस्त हानियों का वर्णन करना कठिन है। ३-अब्रह्मचर्य से हिंसा अब्रह्मचर्य या मैथुन से हिंसा का महान् पाप भी होता है । भगवती सूत्र में, गौतम स्वामी के प्रश्न करने पर, भगवान् ने फर्माया है कि " जिस प्रकार रूई से भरी हुई नली में तम लोहे की सलाई डालने से रुई का नाश होता है, उसी प्रकार कामाचार सेवन करने वाला, स्त्री-योनि के जन्तुओं का नाश करता है । ये जन्तु सन्नी पंचेन्द्रिय हैं और उनकी संख्या अधिक से अधिक नव लाख है। इन नव लाख
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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