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________________ ( १२४) कसौटी पर भोजन की परख नहीं करते । वे जिह्वा को कसौटी बनाकर भोजन की अच्छाई-बुराई की जांच करते हैं । जो जीवन की दृष्टि से भोजन करता है वह स्वास्थ्यनाशक और जीवन को भ्रष्ट करने वाला भोजन कैसे कर सकता है ? कुशल मनुष्य अज्ञात व्यक्ति को सहसा अपने घर में स्थान नहीं देता । तब जिस भोजन के गुण-दोष का पता न हो उसे पेट में स्थान देना, कहां तक उचित कहा जा सकता है ? जो ऐसे भोजन को पेट में ठूस लेता है, उसके पेट को भोजन-पिटारे के सिवा और क्या कहा जा सकता है ? एक विद्वान् का कथन है कि दनिया में जितने अादमी खाने-पीने से मरते हैं, उतने खाने-पीने के अभाव में नहीं मरते । लोग पहले तो ढूंस-ठूस कर खाते हैं, फिर डाक्टर की शरण लेते हैं । आज जो आदमी जितनी अधिक चीजें अपने भोजन में समाविष्ट करता है वह उतना ही बड़ा आदमी गिना जाता है; मगर शास्त्र का आदेश यह है कि जो जितना महान् त्यागी है वह उतना ही महान् पुरुष है । शास्त्र में आनन्द श्रावक का वर्णन करते हुए कहा गया है कि बारह करोड़ स्वर्ण मोहरों का और चालीस हजार गायों का धनी होने पर भी उसने अपने खाने पीने के लिए कुछ गिनती की चीजों की ही मर्यादा कर ली थी। इस प्रकार खानपान के विषय में जो जितना संयम रखता है वह उतना ही महान् है । जिह्वासंयम से स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है । नागरिकों को जितना और जैसा भोजन मिलता है, उतना और वैसा किसानों को नहीं । फिर भी अमर दोनों की कुश्ती हो तो किसान ही विजयी होगा । यह कौन नहीं
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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