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________________ (१०८) स्वच्छन्द बना दिये गये थे- विरोध न करने के कारण राजगृही की प्रजा को भोगना पड़ा। यदि राजगृही की प्रजा राजा श्रेणिक की ऐसी आज्ञा का विरोध करती तो अर्जुन माली के हाथ से प्रजा के बहुत से निरपराध मनुष्य न मारे जाते । इसलिये इस अतिचार का अर्थ राजा के विरुद्ध काम करना नहीं हो सकता । हाँ, राज्य के विरुद्ध काम करना चाहे इस अतिचार का अर्थ लगा लिया जावे क्योंकि राज्य ' देश की. सुव्यवस्था का नाम है । राणा और राज्य शब्द के अर्थ में अन्तर है। राजा वह कहलाता है, जो देश की सुव्यवस्था के लिये नियत किया जावे । जिस देश में सुव्यवस्था नहीं है, वहां के लिये राजा के होते हुए भी कहा जाता है कि अमुक जगह अराजकता फैली हुई है, अर्थात् सुव्यवस्था नहीं है । यदि यह अतिचार राजा के विरुद्ध काम करने का भी मान लिया जावे, तब भी शास्त्रीय दृष्टि से राजा वही है, जिसे बहुजन समाज देश की सूव्यवस्था के लिये नियत करे । जिस राजा का बहुजन समाज विरोध करता है, परन्तु वह अपनी तलवार के जोर से राजा बना हुआ है और लोग भय के मारे उसे राजा मानते हैं, ऐसा राजा शास्त्रीय दृष्टि से राजा नहीं कहला सकता। मतलब यह है कि इस अतिचार का अर्थ राजा के विरुद्ध काम करना नहीं, किन्तु विरुद्ध राज्य का उल्लंघन करना है। चौथा अतिचार कूडतुल्लकूडमाणे या कूटतुलाकूटमान है । इसकी व्याख्या करते हुए टीकाकार कहते हैं तुला प्रतीता मान-कुडवादि कूटत्वं-न्यूनाधिकत्वं
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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