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________________ (१००) शास्त्रकारों ने गृहस्थ श्रावकों के लिये स्थूल अदत्तादानविरमरण व्रत बतलाया है । उन्होंने श्रावकों के लिये यह व्रत धारण करना आवश्यक बतलाया है । थूलगश्रदत्तादारणं समरगोवासश्रो पञ्चखाइ, से दिन्नादा दुविहे पन्नत्ते तंजहा - सचित्तादाणे श्रचितादत्तादाणे । ( आवश्यक सूत्र अ० ६ ) अर्थात् -- श्रमणोपासक 'स्थूल अदत्तादान का त्याग करे । स्थूल अदत्तादान दो प्रकार का है । एक सचित्त- अदत्तादान और दूसरा चित्त - अदत्तादान | टीकाकार ने स्थूल अदत्तादान की व्याख्या करते हुए कहा है कि दुष्ट अध्यवसाय - पूर्वक अपने अधिकार से परे, अर्थात् दूसरे के अधिकार की वस्तु को बिना उस वस्तु के श्रधिकारी की आज्ञा के ग्रहण करना, स्थूल - अदत्तादान है । यह अदत्तादान दो प्रकार का है । जिसमें जीव है वह सचित्त है और सचित्त की चोरी करना, सचित्त- अदत्तादान है । सचित्त में मनुष्य, पशु, पक्षी, कीटाणु, बीज, वृक्ष प्रादि वे सब शामिल हैं, जिनमें जीव है जिसमें जीव नहीं है, उसे अचित्त कहते हैं । जैसे सोना, चांदी, ताम्बा, पीतल, रत्न, कंकर, वस्त्र आदि । अचित्त की चोरी करना अचित्त - अदत्तादान है । शास्त्रकारों ने गृहस्थ - श्रावकों को स्थूल प्रदत्तादानविरमण व्रत में उस चोरी का त्याग बताया है, जिसे संसार में चोरी कहते हैं और जिस चोरी के करने से चोरी करने
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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