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________________ (58) लोगों की गणना है, इसके लिए प्रश्नव्याकरण सूत्र में कहा है कि ― " दूसरे का धन हरण करने में दक्ष, इसके लिये अवसर के जानकार तथा साहस रखने वाले और हाथ की सफाई वाले ही लोग चोरी करते हैं । अपने स्वरूप को छिपा, बातों का आडम्बर बना, मधुर-मधुर बोल कर दूसरे को ठगने वाला चोर होता है । जिसकी आत्मा तुच्छ है, जिसकी धन- लालसा बढ़ी हुई है, जो देश या समाज से बहिष्कृत है, जिसे मर्यादा भंग करने में संकोच नहीं है, जो जुना खेलता है, चोरी में बाधा देने वाले को या जिससे घन मिलने की प्राशा है उसकी घात करने में जिसे भय या संकोच नहीं होता, अपने साथियों की घात करने में भी जो नहीं हिचकिचाता और ग्राम, नगर, जंगल आदि को जला देता है, वह चोरी करता है । जो ऋण लेकर फिर लौटाना नहीं जानता, जो सन्धि भंग करता है, जो सुव्यवस्था रखने वाले राजा का बुरा चाहता है, साधु-साध्वी, श्रावकश्राविका में जो भेद डालता है और चोरी करने वालों को उनके चोरी के कार्य में किसी भी रूप से सहायता देता है, वह चोर है । चोर लोग, जबरदस्ती या गुप्त रह कर और वशीकरणादि मन्त्रों का प्रयोग करके गांठ काट कर तथा और भी दूसरे उपायों से दूसरे का धन, स्त्री, पुरुष, दास, दासी, गाय, घोड़ा आदि हरण कर लेते हैं । इसी प्रकार राज-भंडार तोड़ कर भी धन - हरण करते हैं । इसी तरह दूसरे के धन को हरण करने के प्रत्याख्यान - रहित, विपुल बल परिवार वाले, अपने धन में सन्तोष न मानने वाले और दूसरे के धन का लोभ रखने वाले बहुत से राजा
SR No.002213
Book TitleGruhastha Dharm Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherAkhil Bharat Varshiya Sadhumargi Jain Sangh
Publication Year1976
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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