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________________ आत्मा का दर्शन ३९८ कंटियाणं गतओ। ताओ छड्डेत्ता परसुहत्थगता चरवाहों ने इसकी सूचना चंडकौशिक को दी। वह जंगल रोसेणं धगधगेंतो कुमारेहिं एंतो दिठो। ते तं में ईंधन लाने के लिए गया हुआ था। उसे छोड़ कुल्हाड़ा दळूण पलायंति। सोऽवि कुहाडहत्थो पहावितो। हाथ में लिए आश्रम की ओर दौड़ा। क्रोध से लाल-पीले आवडितो पडितो। सो कुहाडो से अद्दो ठितो। बने उस चंडकौशिक को कुमारों ने आते हुए देखा। वे तत्थ से सिरं दो भागे कयं। तत्थ मतो तंमि चेव दौड़ने लगे। चंडकौशिक कुल्हाड़ा हाथ में लिए उनका वणसंडे दिट्ठीविसो सप्पो आयातो। तेण रोसेण पीछा करने लगा। मार्ग में ठोकर खाकर गिर पड़ा। लोभेण य तं वणसंडं रक्खति। ते तावसा सव्वे __कुल्हाड़ा सीधा उसके सिर पर जा लगा। सिर दो भागों में दद्धा। जे अदड्ढगा ते णट्ठा। सो तिसञ्झं तं विभक्त हो गया। वह मरकर उसी वनखंड में दृष्टिविष वणसंड परियंतेऊणं जं सउणगमवि पासति तं । सर्प हुआ। क्रोध और लोभ के वशवर्ती बना हुआ, वह डहति। उस वनखंड की रक्षा करता था। उसने वहां रहने वाले सभी तापसों को अपने दृष्टिविष से जला दिया। जो शेष बचे, वे भाग गए। वह तीनों सन्ध्याओं में वनखंड की परिक्रमा करने लगा। किसी पक्षी को भी देखता तो उसे जला देता। ताहे सामि तेण दिट्ठो। भगवं च गंतूण तत्थ . चंडकौशिक ने देखा-महावीर कायोत्सर्ग की मुद्रा में पडिमं ठितो। आसुरुत्तो ममं ण जाणसित्ति खड़े हैं। वह क्रुद्ध हो गया। क्या तू मुझे नहीं सूरिएणाझाइत्ता पच्छा सामिं पलोएति, जाव सो ण जानता ?-ऐसा कह उसने सूर्य की ओर दृष्टि डाल डज्झति जहा अन्ने। एवं दो तिन्नि वारे। महावीर की ओर देखा। दूसरे लोग उसके दृष्टि प्रक्षेप मात्र से जल जाते थे। महावीर नहीं जले। उसने दो तीन बार अपनी विषबुझी आंखों से महावीर की ओर देखा। पर महावीर पर कोई असर नहीं हुआ। ताहे गंतूण डसति, डसित्ता सरत्ति अवक्कमति मा चंडकौशिक रेंगता हुआ महावीर के निकट पहुंचा। मे उवरिं पडिहिति। तहवि ण मरति। एवं तिन्नि उन्हें काटा। यह मेरे ऊपर न गिर जाए यह सोच पीछे वारे। ताहे पलोएंतो अच्छति अमरिसेणं। तस्स तं हटकर ठहर गया। महावीर न गिरे और न मृत्यु ने उनका रूवं पलोएंतस्स ताणि विसभरिताणि अच्छीणि वरण किया। उसने तीन बार महावीर को काटा। पर विज्झातानि सामिणो कंतिं सोम्मतं च दळूणं। ताहे महावीर के कुछ नहीं हुआ। इस असफलता के कारण सामिणा भणियं-उवसम भो चंडकोसिया! अमर्ष से भरकर वह महावीर को देखने लगा। इस प्रकार उवसमित्ति, ताहे तस्स ईहावूहमग्गणगवेसणं देखते-देखते महावीर की कांति और सौम्यता उसकी करेंतस्स जातिस्सरणं समुप्पन्न। आंखों में उतर आई। उसकी आंखों का विष धुल गया। चंडकौशिक के बदलते हुए रूप को देख महावीर बोले-चंडकौशिक! शांत हो जाओ। शांत हो जाओ। यह शब्द सुनकर वह ईहा, अपोह, मार्गणा और गवेषणा करने लगा। उसे पूर्वजन्म की स्मृति हो आई। ताहे तिक्खत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेत्ता वंदति उसने तीन बार प्रदक्षिणा की। मन से वंदना की। णमंसति, णमंसेत्ता ताहे भत्तं पच्चक्खाति। नमस्कार किया और उसी समय उसने.अनशन स्वीकार कर लिया।
SR No.002210
Book TitleAatma ka Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Vishva Bharti
PublisherJain Vishva Bharti
Publication Year2008
Total Pages792
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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