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________________ प्रथम अध्ययन, उद्देशक १ पमज्जिय पमग्जिय तओ संजयामेव परिट्ठविज्जा॥१॥ ___ छाया- स भिक्षुर्वा भिक्षुकी वा गृहपतिकुलं पिंडपातप्रतिज्ञया अनुप्रविष्टः सन्, स यत् पुनः जानीयात्, अशनं वा पानं वा खादिमं वा स्वादिमं वा प्राणिभिः पनकैः वा बीजैः वा हरितैः वा संसक्तं वा उन्मिश्रं वा शीतोदकेन वा अवसिक्तं रजसा वा परिघर्षितं तथाप्रकारं अशनं वा पानं वा खादिमं वा स्वादिमं वा परहस्ते वा परपात्रे वा अप्रासुकं अनेषणीयं इति मन्यमानः लाभे सत्यपि नो प्रतिगृह्णीयात्, स च आहत्य प्रतिगृह्णीयात् स्यात् स तदादाय एकान्तमपक्रामेत्, एकान्तमपक्रम्य अथारामे वा अथोपाश्रये वा अल्पांडे अल्पप्राणे अल्पबीजे अल्पहरिते अल्पावश्याये अल्पोदके अल्पोत्तिंगपनकदकमृत्तिकामर्कटसन्तानके विविच्य २ उन्मिश्रं विशोध्य २ ततः संयत एव भुंजीत वा पिबेद् वा यच्च न शक्नुयात् भोक्तुं वा पातुं वा स तदादाय एकान्तमपक्रामेत्, अथ दग्धस्थंडिले वा अस्थिराशौ वा किट्टराशौ वा तुषराशौ वा गोमयराशौ वा अन्यतरराशौ वा तथाप्रकारे स्थंडिले प्रत्युपेक्ष्य प्रत्युपेक्ष्य प्रमृज्य प्रमृज्य ततः संयत एव परिष्ठापयेत्। पदार्थ-से-वह। भिक्खू-भिक्षु।वा-अथवा।भिक्खुणी वा-भिक्षुणी आर्या। गाहावइ-गाथापति गृहस्थ के। कुलं-कुल में अर्थात् घर में। पिंडवायपडियाए-पिंडपात-आहार प्राप्ति की प्रतिज्ञा से गृहस्थ के घर में। अणुपविढे समाणे-अनुप्रविष्ट हुआ।से-वह। जं-जो।पुण-फिर।जाणिज्जा-यह जाने कि।असणं वा-अन्न अथवा। पाणं वा-पानी अथवा। खाइमं वा-खादिम अथवा। साइमं वा-स्वादिम-स्वादिष्ट पदार्थ। पाणेहिं वा-द्वीन्द्रिय प्राणियों से अथवा। हरिएहिं वा-हरित अंकुरादि से। संसत्तं-संयुक्त। उम्मिस्सं-मिश्रित।सीओदएण वा-या शीतोदक से। ओसित्तं-अवसिक्त गीला है। रयसा वा-अथवा रज से, सचित्त धूलि से। परिघासियंपरिघर्षित है। तहप्पगारं-तथा प्रकार के।असणं वा-आहार अथवा। पाणं वा-पानी-जल अथवा।खाइमं वा-खाद्य पदार्थ अथवा।साइमं वा-स्वादिष्ट पदार्थ। परहत्थंसि वा-गृहस्थ के हाथ में अथवा। परपायंसिवा-गृहस्थ के पात्र में है। ति-इस प्रकार के आहार को।अफासुयं-अप्रासुक सचित्त।अणेसणिज-सदोषदोष युक्त।मन्नमाणे-मानता हुआ।लाभेऽवि संते-इस प्रकार का आहार प्राप्त होने पर भी।नो पडिगाहिजाग्रहण न करे। य-पुनः से-वह साधु । आहच्च-कदाचित्। पडिग्गाहिए सिया-उसे ग्रहण करले तो। से-वह साधु । तं-उस आहार को। आयाए-लेकर-ग्रहण करके। एगंतमवक्कमिजा-एकान्त स्थान में चला जाए। एगंतमवक्कमित्ता-एकान्त में जाकर। अहे-अथवा। आरामंसि वा-उद्यान में। अहे-अथवा। उवस्सयंसि वा-उपाश्रय में अथ' शब्द जहां पर गृहस्थ न आता हो उस अर्थ में है और 'वा' शब्द विकल्पार्थ में अथवा शून्य गृहादि के अर्थ में जानना। अप्पंडे-अंडादि से रहित स्थान पर १ । अप्पपाणे-द्वीन्द्रियादि जीवों से रहित स्थान। अप्पबीए-बीजों से रहित।अप्पहरिए-हरित से रहित।अप्पोसे-ओस से रहित।अप्पोदए-उदक-जल से रहित। अप्पुत्तिंगपणगदगमट्टियमक्कड़ासंताणए-जहां पर जल, चींटियें, लीलन-फूलन, मिट्टी युक्त जल अथवा १. यहाँ अल्प शब्द अभाव अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।
SR No.002207
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages562
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size13 MB
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