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________________ को व्यतीत करना चाहिए। तृतीय पौरुषी-संबंधी आवश्यक क्रियाओं के अनुष्ठान में प्रवृत्त होने वाले साधु के लिए जो कर्तव्य निर्दिष्ट हैं, अब शास्त्रकार उसके विषय में कहते हैं - तइयाए . पोरिसीए, भत्तपाणं गवेसए । छण्हमन्नयरागम्मि, कारणम्मि समुट्ठिए ॥ ३२ ॥ तृतीयायां पौरुष्यां, भक्तपानं गवेषयेत् । षण्णामन्यतरस्मिन्, कारणे समुत्थिते ॥ ३२ ॥ पदार्थान्वयः-तइयाए-तीसरी, पोरिसीए-पौरुषी में, भत्त-भक्त, पाणं-पानीय की, गवेसए-गवेषणा करे, छह-छओं के मध्य में, अन्नयरागम्मि-किसी एक, कारणम्मि-कारण के, समुट्ठिए-उपस्थित हो जाने पर। मूलार्थ-तृतीय पौरुषी के आ जाने पर भक्त और पानी की अर्थात् भोजन-पानी की गवेषणा करे, षट्कारणों में से किसी एक कारण के उत्पन्न हो जाने पर। ___टीका-जब साधक द्वितीय पौरुषी में करने योग्य ध्यानादि क्रियाओं को संपूर्ण कर चुके तब तृतीय पौरुषी के कर्त्तव्य में प्रवृत्त हो जाए। ध्यान-क्रिया के अन्तर्गत कायोत्सर्ग का भी ग्रहण किया जा सकता है, जब तृतीय पौरुषी का समय आ जाए, तब षट्कारणों में से किसी एक कारण के उपस्थित हो जाने. पर साधु आहार-पानी की गवेषणा करे। तात्पर्य यह है कि बिना कारण के आहार-पानी की गवेषणा में प्रवृत्त न होवे, अर्थात् बिना कारण के आहारादि नहीं करना चाहिए, परन्तु यह कथन उत्सर्गमार्ग का अवलंबन करके किया गया है, जो कि प्रायः जिनकल्पी के लिए ही विहित है और अपवाद मार्ग में स्थविरकल्पी तो समय पर आहारादि क्रिया में प्रवृत्त होते ही हैं। अब षट्कारणों के विषय में कहते हैं - वेयण वेयावच्चे, इरियट्ठाए व संजमट्ठाए । तह पाणवत्तियाए, छठें पुण धम्मचिन्ताए ॥ ३३ ॥ वेदनायै वैयावृत्याय, इर्यार्थाय च संयमार्थाय । तथा प्राणप्रत्ययाय, षष्ठं पुनर्धर्मचिन्तायै ॥ ३३ ॥ पदार्थान्वयः-वेयण-क्षुधा-वेदना का उपशम करने के लिए, वेयावच्चे-गुरु की सेवा करने के लिये, य-और, इरियट्ठाए-ईर्यासमिति के लिये, संजमट्ठाए-संयम के लिये, तह-तथा, पाणवत्तियाए-प्राण-रक्षा के लिए, छठें-छठे, धम्मचिन्ताए-धर्मचिन्तन के लिए। १. षट्कारणों का उल्लेख अगली गाथा में किया गया है। उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [४४] सामायारी छव्वीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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