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________________ श्रमण श्रेष्ठ कर्मठयोगी श्री शिरीष मुनि जी महाराज : संक्षिप्त परिचय श्री शिरीषमुनि जी महाराज आचार्य भगवन् ध्यान योगी श्री शिवमुनि जी महाराज के प्रमुख शिष्य हैं। वर्ष 1987 के आचार्य भगवन के मुम्बई (खार) के वर्षावास के समय आप पूज्य श्री के सम्यक् सम्पर्क में आए। आचार्य श्री की सन्निधि में बैठकर आपने आत्मसाधना के तत्त्व को जाना और हृदयंगम किया । उदयपुर से मुम्बई आप व्यापार के लिए आए थे और व्यापारिक व्यवसाय में स्थापित हो रहे थे। पर आचार्य भगवन के सान्निध्य में पहुंचकर आपने अनुभव किया कि अध्यात्म ही परम व्यापार है। भौतिक व्यापार का कोई शिखर नहीं है जबकि अध्यात्म व्यापार स्वयं एक परम शिखर है और आपने स्वयं के स्व को पूज्य आचार्य श्री के चरणों पर अर्पित - समर्पित कर दिया । पारिवारिक आज्ञा प्राप्त होने पर 7 मई सन् 1990 यादगिरी (कर्नाटक) में आपने आर्हती दीक्षा में प्रवेश किया। तीन वर्ष की वैराग्यावस्था में आपने अपने गुरुदेव पूज्य आचार्य भगवन से ध्यान के माध्यम से अध्यात्म में प्रवेश पाया। दीक्षा के बाद ध्यान के क्षेत्र में आप गहरे और गहरे उतरते गए। साथ ही आपने हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत और प्राकृत आदि भाषाओं का भी तलस्पर्शी अध्ययन जारी रखा। आपकी प्रवचन शैली आकर्षक है। समाज में विधायक क्रांति के आप पक्षधर हैं और उसके लिए निरंतर समाज को प्रेरित करते रहते हैं। आप एक विनय गुण सम्पन्न, सरल और सेवा समर्पित मुनिराज हैं। पूज्य आचार्य भगवन के ध्यान और स्वाध्याय के महामिशन को आगे और आगे ले जाने के लिए कृतसंकल्प हैं। अहर्निश स्व-पर कल्याण साधना रत रहने से अपने श्रमणत्व को साकार कर रहे हैं। शब्द चित्र में आपका संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है नाई (उदयपुर, राजस्थान) 19-02-1964 जन्म स्थान जन्मतिथि माता: पिता वंश, गौत्र दीक्षा तिथि दीक्षा स्थल गुरु दीक्षार्थ प्रेरणा शिक्षा अध्ययन उपाधि शिष्य सम्पदा विशेष प्रेरणादायी कार्य १ : : : : श्रीमती सोहनबाई श्रीमान ख्यालीलाल जी कोठारी ओसवाल, कोठारी 7 मई, 1990 - यादगिरी (कर्नाटक) श्रमण संघ के चतुर्थ पट्टधर आचार्य श्री शिवमुनिजी महाराज दादीजी मोहन बाई कोठारी द्वारा । एम. ए. (हिन्दी साहित्य) आगमों का गहन गंभीर अध्ययन, जैनेतर दर्शनों में सफल प्रवेश तथा हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, प्राकृत, मराठी, गुजराती भाषाविद् । श्रमण श्रेष्ठ कर्मठयोगी, साधुरत्न श्री निशांत मुनि जी, श्री निरज मुनि जी श्री निरंजन मुनि जी एवं श्री निपुण मुनि जी ध्यान योग साधना शिविरों का संचालन, बाल- संस्कार शिविरों और स्वाध्याय-शिविरों के कुशल संचालक । आचार्य श्री के अनन्य सहयोगी । उत्तराध्ययन सूत्रम् - भाग - ३ [४९५ ] परिशिष्ट
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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