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________________ टीका-प्राणत देवलोक में भी २०० विमान हैं। उनमें निवास करने वाले देवों का उत्कृष्ट और जघन्य आयुमान इस गाथा में वर्णन किया गया है। अब ग्यारहवें स्वर्ग में रहने वाले देवों की आयुस्थिति को कहते हैं सागरा इक्कवीसं तु, उक्कोसेण ठिई भवे । आरणम्मि जहन्नेणं, वीसई सागरोवमा ॥ २३१ ॥ सागराणि एकविंशतिस्तु, उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत् । आरणे जघन्येन, विंशतिः सागरोपमाणि ॥ २३१ ॥ पदार्थान्वयः-आरणम्मि-आरण देवलोक में, जहन्नेणं-जघन्यतया, वीसई-बीस, सागरोवमा-सागरोपम की, ठिई-स्थिति, भवे-होती है, तु-और, उक्कोसेण-उत्कृष्टतया, इक्कीसं-इक्कीस, सागरा-सागरोपम की है। मूलार्थ-आरण नामक एकादशवें देवलोक में देवों की जघन्य स्थिति २० सागरोपम की और उत्कृष्ट २१ सागरोपम की होती है। टीका-आरण देवलोक में १५० विमान हैं। उन विमानों में उत्पन्न होने वाले देवों की यह जघन्य और उत्कृष्ट आयु बताई गई है। अब बारहवें स्वर्ग के देवों की आयु का प्रमाण बताते हैं, यथा बावीसं सागराई, उक्कोसेण ठिई. भवे । अच्चुयम्मि जहन्नेणं, सागरा इक्कवीसई ॥ २३२ ॥ द्वाविंशतिः सागराणि, उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत् । अच्युते जघन्येन, सागराणि एकविंशतिः ॥ २३२ ॥.. पदार्थान्वयः-अच्चुयम्मि-अच्युत देवलोक में, जहन्नेणं-जघन्यरूप से, इक्कवीसई-इक्कीस, सागरा-सागरोपम की, उक्कोसेण-उत्कृष्टता से, बावीसं सागराइं-बाईस सागरोपम की, ठिई-स्थिति, भवे-होती है। मूलार्थ-अच्युत नामक बारहवें स्वर्ग में रहने वाले देवों की जघन्य आयु २१ सागर की और उत्कृष्ट २२ सागर की होती है। _____टीका-बारहवें देवलोक में १५० विमान हैं। उनमें निवास करने वाले देवों की यह आयु बताई गई है। आराधक श्रावक अधिक से अधिक इस बारहवें देवलोक तक पहुंच सकता है, व्रतधारी देशविरति श्रावक-श्राविका की इससे आगे गति नहीं है। इन १२ देवलोकों की कल्प संज्ञा है। इनमें सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि, इन तीनों प्रकार के देवों का निवास है। अब ग्रैवेयक देवों की आय के विषय में कहते हैं तेवीस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । पढमम्मि जहन्नेणं, बावीसं सागरोवमा ॥ २३३ ॥ उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [४६८] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अझयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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