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________________ अब लान्तक देवों की आयुस्थिति के विषय में कहते हैं चउद्दस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । लंतगम्मि जहन्नेणं, दस उ सागरोवमा ॥ २२६ ॥ चतुर्दश · सागरोपमाणि, उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत् । लान्तके जघन्येन, दश तु सागरोपमाणि ॥ २२६ ॥ पदार्थान्वयः-लंतगम्मि-लान्तक देवलोक में, जहन्नेणं-जघन्यरूप से, दस-दस, सागरोवमा-सागरोपम, उ-पुनः, उक्कोसेण-उत्कृष्टता से, चउद्दस-चतुर्दश, सागराइं-सागरोपम की, ठिई-स्थिति, भवे-होती है। मूलार्थ-लान्तक देवलोक में जघन्य आयुस्थिति दश सागरोपम की और उत्कृष्ट चतुर्दश सागरोपम की होती है। टीका-लान्तक देवलोक में ५० सहस्र विमान हैं, जो कि अत्यन्त उज्ज्वल और मनोरम हैं। उनमें निवास करने वाले देवों की यह आयुस्थिति वर्णन की गई है। अब सातवें देवलोक की स्थिति का वर्णन करते हैं, यथा सत्तरस सागराइं, उक्कोसेण-ठिई भवे । महासुक्के जहन्नेणं, चउद्दस सागरोवमा ॥ २२७ ॥ सप्तदश सागरोपमाणि, उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत् । महाशुक्रे जघन्येन, चतुर्दश सागरोपमाणिः ॥ २२७ ॥ पदार्थान्वयः-महासुक्के-महाशुक्र देवलोक में, जहन्नेणं-जघन्यतया, चउद्दस सागरोवमा-चतुर्दश सागरोपम की, ठिई-स्थिति, भवे-होती है, उक्कोसेण-उत्कृष्टतया, सत्तरस सागराइं-सप्तदश सागरोपम की है। मूलार्थ-महाशुक्र नामक सातवें देवलोक में रहने वाले देवों की जघन्य आयुस्थिति १४ सागरोपम की होती है और उत्कृष्ट १७ सागरोपम की प्रतिपादित की गई है। टीका-सातवां महाशुक्रनामक देवलोक है। इसमें ४० हजार विमान हैं। उन विमानों की लम्बाई-चौड़ाई असंख्यात योजन की है। उनमें निवास करने वाले देवों की जघन्य आयु १४ सागर की और उत्कृष्ट १७ सागर की मानी गई है। अब आठवें स्वर्ग के देवों की स्थिति बताते हैं, यथा अट्ठारस सागराइं, उक्कोसेण ठिई भवे । सहस्सारम्मि जहन्नेणं, सत्तरस सागरोवमा ॥ २२८ ॥ अष्टादश सागरोपमाणि, उत्कर्षेण स्थितिर्भवेत् । . सहस्रारे जघन्येन, सप्तदश सागरोपमाणि ॥ २२८ ॥ उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ४६६] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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