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________________ प्रकार से वायुकाय के अनेक उत्तर भेद हैं। ____ अब सूक्ष्म वायुकाय के विषय में कहते हैं। सूक्ष्म वायु का कोई उत्तर भेद नहीं, किंतु वह एक ही प्रकार की है। अब सूक्ष्म और बादर वायु का क्षेत्र-विभाग बताते हैं सहमा सव्वलोगम्मि, एगदेसे य बायरा । इत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउव्विहं ॥१२० ॥ सूक्ष्माः सर्वलोके, एकदेशे च बादराः । इतः कालविभागं तु तेषां वक्ष्यामि चतुर्विधम् ॥ १२० ॥ पदार्थान्वयः-सुहुमा-सूक्ष्म, सव्वलोगम्मि-सर्व लोक में व्याप्त हैं, य-और, बायरा-बादर, एगदेसे-लोक के एक देश में स्थित हैं, इत्तो-इसके आगे, तु-फिर, तेसिं-इनके, चउव्विहं-चार प्रकार के, कालविभागं-काल-विभाग को, वुच्छं-कहूंगा। मूलार्थ-इनमें सूक्ष्म वायु सर्व लोक में व्याप्त है और बादर लोक के एक देश में रहता है। अब इसके पश्चात् मैं इनके चतुर्विध कालविभाग का वर्णन करूंगा। टीका-सूक्ष्म वायुकाय सर्व-लोक-व्यापी और बादर वायुकाय एकदेश-व्यापी है, यह गाथा के प्रथम अर्धभाग का तात्पर्य है और अवशिष्ट गाथार्द्ध में वायुकाय के चतुर्विध कालविभाग के वर्णन की प्रतिज्ञा की गई है। अब उक्त प्रतिज्ञा के अनुसार कालविभाग का वर्णन करते हैं संतई पप्प णाईया, अपज्जवसियावि य । ठिइं पडुच्च साईया, सपज्जवसियावि य ॥ १२१ ॥ सन्ततिं प्राप्यानादिकाः, अपर्यवसिता अपि च । स्थितिं प्रतीत्य सादिकाः, सपर्यवसिता अपि च ॥१२१ ॥ पदार्थान्वयः-संतइं-प्रवाह की, पप्प-अपेक्षा से, वायुकाय, अणाईया-अनादि, य-और, अपज्जवसियावि-अपर्यवसित भी है, ठिइं-स्थिति की, पडुच्च-अपेक्षा से, साईया-सादि, य-और, सपज्जवसियावि-सपर्यवसित भी है। मूलार्थ-सन्तान अर्थात् प्रवाह की अपेक्षा से वायुकाय अनादि-अनन्त है और स्थिति की अपेक्षा से वह सादि-सान्त भी है। ___टीका-यदि वायुकाय के प्रवाह पर विचार करें तो उसके आदि और अन्त का अभाव है; अर्थात् वह अनादि-अनन्त है, परन्तु यदि उसकी आयुस्थिति और कायस्थिति का विचार करें तब तो उसके आदि और अन्त दोनों ही उपलब्ध होते हैं। अब स्थिति अर्थात् आयु-स्थिति के सम्बन्ध में कहते हैं, यथा तिण्णेव सहस्साइं, वासाणुक्कोसिया भवे । . आउठिई वाऊणं, अंतोमुहुत्तं जहन्निया ॥ १२२ ॥ उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ४१८] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अन्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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