SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 403
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्वासोच्छ्वास-पर्याप्ति, अतएव ये चारों अपर्याप्त हैं; अर्थात् सूक्ष्म और बादर पृथिवीकाय में ये चारों अपर्याप्त भी होते हैं। इनमें सूक्ष्म तो केवली-प्रत्यक्ष है और बादर का प्रत्यक्ष भान होता ही है। अब इनके उत्तर भेदों का वर्णन करते हुए फिर कहते हैं कि बायरा जे उ पज्जत्ता, दुविहा ते वियाहिया । सण्हा खरा य बोधव्वा, सण्हा सत्तविहा तहिं ॥ ७१ ॥ बादरा ये तु पर्याप्ताः, द्विविधास्ते व्याख्याताः । श्लक्ष्णाः खराश्च बोद्धव्याः, श्लक्ष्णाः सप्तविधास्तत्र ॥ ७१ ॥ पदार्थान्वयः-बायरा-बादर-पृथिवीकाय के, जे-जो, पज्जत्ता-पर्याप्त जीव हैं, ते–वे, दुविहा-दो प्रकार के, वियाहिया-कथन किए गए हैं, सण्हा-श्लक्ष्ण अर्थात् सुकोमल, य-और, खरा-कठिन, बोधव्वा-जानने चाहिएं, तहिं-उन दो भेदों में, सहा-श्लक्ष्ण, सत्तविहा-सात प्रकार के हैं। .. ___ मूलार्थ-जो पर्याप्त-बादर-पृथिवीकाय के जीव हैं वे भी दो प्रकार के वर्णन किए गए हैं-एक मृदु, दूसरे खर। इन दो में भी मृदु के सात भेद हैं। टीका-पर्याप्त बादर-पृथिवीकाय के दो भेद हैं-एक श्लक्ष्ण अर्थात् सुकोमल और दूसरा खर अर्थात् कठिन। ये दोनों ही मृदु और कठिन पृथिवीकाय के नाम से प्रसिद्ध हैं तथा इनमें जो श्लक्ष्ण पृथिवी है, वह सात प्रकार की कही गई है। अब उक्त सात भेदों का वर्णन करते हैं, यथा किण्हा नीला य रुहिरा य, हालिद्दा सुक्किला तहा। पंडुपणगमट्टिया, खरा छत्तीसईविहा ॥,७२ ॥ कृष्णा नीलाश्च रुधिराश्च, हारिद्राः शुक्लास्तथा । पाण्डुपनकमृत्तिकाः, खराः षट्त्रिंशद्विधाः ॥ ७२ ॥ पदार्थान्वयः-किण्हा-काली मिट्टी, य-पुनः, नीला-नीली मिट्टी, य-और, रुहिरा-लाल मृत्तिका, हालिद्दा-पीत मृत्तिका, तहा-तथा, सुक्किला-शुक्ल मृत्तिका, पंडु-पांडु मृत्तिका-वा, पणगमट्टिया-पनक अर्थात् अत्यन्त सूक्ष्म मृत्तिका, तथा, खरा-कठिन पृथिवी, छत्तीसई-छत्तीस, विहा-प्रकार की है। मूलार्थ-श्लक्ष्ण पृथिवीकाय के सात भेद हैं-काली, नीली, लाल, पीली, श्वेत एवं पांडु तथा पनक मृत्तिका तथा खर पृथिवीकाय के छत्तीस भेद हैं। टीका-प्रस्तुत गाथा में श्लक्ष्णा पृथिवी के सातों भेदों का वर्णन किया गया है। पांडु उसका नाम है जिसमें थोड़ी सी तो श्वेतता है और शेष अन्य वर्ण हों और आकाश में फैलने वाली अत्यन्त सूक्ष्म रज को पनकमृत्तिका कहते हैं; तथा मरुस्थल में जो पर्यटिकारूप होती है और चरण के अभिघात से जो शीघ्र ही आकाश में चढ़ जाती है, उसे भी पनकमृत्तिका कहा जाता है। तात्पर्य यह है कि पनक अत्यन्त सूक्ष्म रज का नाम है। अब ऊपर बताए गए खरमृत्तिका के ३६ भेदों का वर्णन करते हैं उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ३९४] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy