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________________ उक्त वर्ण-रसादि गुणों की उपलब्धि होती है। रूपी द्रव्य के चार भेद हैं-१. स्कन्ध, २. स्कन्ध का देश, ३. स्कन्ध का प्रदेश और ४. परमाणु। इस प्रकार से पुद्गल-द्रव्य चार भागों में विभक्त किया गया है। १. स्कन्ध-परमाणु-प्रचय अर्थात् परमाणुओं के समूह को स्कन्ध कहते हैं। २. देश-स्कन्ध के किसी अमुक कल्पित विभाग का नाम देश है। ३. प्रदेश-स्कन्ध के निरंश अर्थात् अविभाज्य अंश को, जो कि अपने स्कन्ध से पृथक् न हुआ हो उसे प्रदेश कहते हैं। ४. परमाणु-स्कन्ध के पृथक् हुए निरंश भाग की परमाणु संज्ञा है और संक्षेप से तो रूपी द्रव्य अर्थात् पुद्गल के स्कन्ध और परमाणु ये दो ही भेद हैं, क्योंकि देश और प्रदेश इन दोनों का स्कन्ध में ही अन्तर्भाव हो जाता है। अब स्कन्ध और परमाणु का लक्षण-वर्णन करते हैं, यथा एगत्तेण पुहुत्तेण, . खंधा य परमाणु य । लोएगदेसे लोए य, भइयव्वा ते उ खेत्तओ । ___एत्तो कालविभागं तु, तेसिं वुच्छं चउव्विहं ॥ ११ ॥ एकत्वेन पृथक्त्वेन, स्कन्धाश्च परमाणवश्च । लोकैकदेशे लोके च, भजनीयास्ते तु क्षेत्रतः । इतः कालविभागं तु, तेषां वक्ष्ये चतुर्विधम् ॥ ११ ॥ - पदार्थान्वयः-एगत्तेण-परमाणुओं के एकत्व से अर्थात् मिलने से, खंधा-स्कन्ध होता है, य-और, पुहुत्तेण-पृथक्-पृथक् होने से उनकी, परमाणु-परमाणु संज्ञा हो जाती है, लोएगदेसे-लोक के एकदेश में, य-तथा, लोए-लोक में, ते-वे स्कन्ध और परमाणु, उ-वितर्क अर्थ में है, खेत्तओ-क्षेत्र से, भइयव्वा-भजनापूर्वक रहते हैं, एत्तो-इसके अनन्तर, कालविभागं-कालविभाग के विषय में, तेसिं-उन स्कन्ध और परमाणुओं का, चउव्विहं-चार प्रकार से, वुच्छं-निरूपण करूंगा। - मूलार्थ-द्रव्य की अपेक्षा से परमाणुओं के परस्पर मिलने से स्कन्ध होता है तथा भिन्न-भिन्न होने से उनको परमाणु कहते हैं। क्षेत्र की अपेक्षा से स्कन्ध और परमाणु, लोक के एक देश में और सम्पूर्ण लोक में भजना से रहते हैं, अर्थात् रहते भी हैं और नहीं भी। इसके अनन्तर अब काल की अपेक्षा से स्कन्ध और परमाणु के चार भेद बतलाते हैं। टीका-इस सार्द्ध गाथा में स्कन्ध और परमाणु का द्रव्य से स्वरूप अर्थात् लक्षण वर्णन करने के साथ-साथ उनकी क्षेत्रस्थिति का भी वर्णन कर दिया गया है। इसके अतिरिक्त इनकी काल-स्थिति के वर्णन की प्रतिज्ञा भी की गई है। जब अनेक पुद्गल अर्थात् परमाणु एकत्रित होकर आपस में विशिष्ट प्रकार से मिल जाते हैं, तब उनकी स्कन्ध संज्ञा होती है और जब वे एक दूसरे से पृथक् होते हैं, तब उनको परमाणु कहते हैं। जैसे बहुत से पत्रों के विशिष्ट संचय को पुस्तक का नाम दिया जाता है और अलग-अलग रहने से उनकी पत्र संज्ञा होती है। तात्पर्य यह है कि पत्रों के संचय से पुस्तक और पृथक्-पृथक् होने से पत्र, ये दो संज्ञाएं जैसे बन जाती हैं, इसी प्रकार स्कन्ध और परमाणु के विषय में समझ लेना चाहिए। उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [३६३] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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