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________________ कड़वी होती है, परन्तु कृष्णलेश्या का रस इनसे भी अनन्तगुणा कड़वा है। रस का अर्थ यहां पर 'आस्वाद विशेष' है। 'यथा' और 'कटु' इन दोनों शब्दों का प्रत्येक पद के साथ सम्बन्ध करना चाहिए। अब नीललेश्या के रस का वर्णन करते हैं जह तिगडुयस्स य रसो, तिक्खो जह हत्थीपिप्पलीए वा। एत्तो वि अणंतगुणो, रसो उ नीलाए नायव्वो ॥ ११ ॥ यथा त्रिकटुकस्य च रसः, तीक्ष्णो यथा हस्तिपिप्पल्या वा। इतोऽप्यनन्तगुणः, रसस्तु नीलाया ज्ञातव्यः ॥ ११ ॥ . पदार्थान्वयः-जह-यथा, तिगडुयस्स-त्रिकटु का, रसो-रस, तिक्खो-तीक्ष्ण होता है, वा-अथवा, जह-यथा, हत्थीपिप्पलीए-गजपीपली का रस होता है, एत्तो वि-इससे भी, अणंतगुणो-अनन्तगुणा अधिक तीक्ष्ण, रसो-रस, नीलाए-नीललेश्या का, नायव्वो-जानना चाहिए, य-उ-प्राग्वत् । मूलार्थ-नीललेश्या के रस को मघ, मिर्च और सौंठ तथा गजपीपल के रस से भी अनन्तगुणा तीक्ष्ण समझना चाहिए। टीका-हस्तिपीपल-गजपीपल, यह बड़े आकार की मघा पीपल ही होती है। अब कापोतलेश्या के रस का वर्णन करते हैं- . जह तरुणअंबगरसो, तुवरकविट्ठस्स वावि जारिसओ । एत्तो वि अणतगुणो, रसो उ काऊए नायव्वो ॥ १२ ॥ यथा तरुणाम्रकरसः, तुवरकपित्थस्य वापि यादृशः । इतोऽप्यनन्तगुणः, रसस्तु कापोताया ज्ञातव्याः ॥ १२ ॥ पदार्थान्वयः-जह-जैसे, तरुणअंबगरसो-तरुण-अपरिपक्व-आम्रफल का रस होता है, वा-अथवा, तुवरकविट्ठस्स-तुवर और कपित्थ के फल का, जारिसओ-जैसा रस होता है, एत्तो वि-इससे भी, अणंतगुणो-अनन्तगुणा अधिक, रसो-रस, उ-निश्चयार्थक है, काऊए-कापोतलेश्या का, नायव्वो-जानना चाहिए, अवि-अपि-पादपूर्ति के लिए है। ___मूलार्थ-कापोतलेश्या के रस को कच्चे आम के रस और कच्चे तुवर और कच्चे कपित्थफल के रस की अपेक्षा अनन्तगुणा अधिक खट्टा समझना चाहिए। टीका-यहां पर 'तरुण' शब्द अपरिपक्व अर्थ में ग्रहण किया गया है, अतः तरुण आम्रफल का अर्थ हुआ-कच्चा आम्रफल। इसी प्रकार तरुण शब्द का तुवर और कपित्थ के साथ भी सम्बन्ध कर लेना चाहिए। ____अब तेजोलेश्या के रस का निरूपण करते हैं, यथा उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ३१४] लेसज्झयणं णाम चोत्तीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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