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________________ पदार्थान्वयः-तेवीसइसूयगडेसु-२३ सूत्रकृत सूत्र के अध्ययनों में, रूवाहिएसु-रूपाधिक, सुरेसु-सुरों में, य-और, जे-जो, भिक्खू-साधु, निच्चं-सदैव, जयई-यत्न करता है, से न अच्छइ मंडले-वह इस संसार में नहीं ठहरता। मूलार्थ-सूत्रकृतांगसूत्र के २३ अध्ययनों के स्वाध्याय में और २४ प्रकार के देवों के विषय में जो भिक्षु सदा यत्न रखता है, वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता। टीका-सूत्रकृतांग के १६ अध्ययनों का नाम तो पीछे कथन कर दिया गया है और द्वितीय श्रुतस्कन्ध में आए हुए अवशिष्ट सात अध्ययनों का नामनिर्देश इस प्रकार है-यथा-१. पुंडरीक, २. क्रियास्थान, ३. आहारपरिज्ञा, ४. प्रत्याख्यान, ५. अनगार, ६. आर्द्रकुमार और ७. नालंदीय, ये कुल मिलाकर २३ होते हैं। २४ प्रकार के देव इस प्रकार हैं-दस जाति के भवनपति, आठ जाति के व्यन्तर, पांच जाति के ज्योतिषी और एक जाति के वैमानिक अथवा २४ रूपाधिकदेव अर्थात् ऋषभादि २४ देवाधिदेवतीर्थंकर हैं। तात्पर्य यह है कि जो भिक्षु सूत्रकृतांग के २३ अध्ययनों का स्वाध्याय करता है और २४ रूपाधिक देवों अर्थात् तीर्थंकरों की सम्यक्तया आराधना करता है वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता। अब पुनः इसी विषय में कहते हैं - पणवीसभावणास, उद्देसेसु दसाइणं । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ १७ ॥ पञ्चविंशतिभावनासु, उद्देशेषु दशादीनाम् । यो भिक्षुर्यतते नित्यं, स न तिष्ठति मण्डले ॥ १७ ॥ पदार्थान्वयः-पणवीस-पच्चीस, भावणासु-भावनाओं में, दसाइणं-दशादि के, उद्देसेसु-उद्देशों में, जे-जो, भिक्खू-साधु, निच्चं-सदैव, जयई-यत्न करता है, से-वह, न अच्छइ-नहीं ठहरता, मंडले-संसार में। .. मूलार्थ-जो भिक्षु पच्चीस प्रकार की भावनाओं में तथा दशाश्रुत, व्यवहार और बृहत्कल्प के २६ उद्देशों में यत्न रखता है वह इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता। टीका-शास्त्रकारों ने पांच महाव्रतों की २५ भावनाएं कही हैं। ये संसाररूप समुद्र से पार होने के लिए बेड़ियों (किशतियों) के समान हैं। एक-एक महाव्रत की पांच-पांच भावनाएं हैं, जो इस प्रकार हैं - प्रथम महाव्रत-१. ईर्यासमिति-भावना, २. मनःसमिति-भावना, ३. वचनसमिति-भावना, ४. कायसमिति-भावना और ५. एषणासमिति-भावना। उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ २०९] चरणविही णाम एगतीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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