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________________ जो भिक्षु सम्यक्तया अनुष्ठान करता है, वह चतुर्गतिरूप इस संसारचक्र से बहुत ही शीघ्र छूट जाता है। जो स्वबुद्धि से सत् और असत् का विचार करने वाला हो, उसे पंडित कहते हैं। इस प्रकार का विज्ञ पुरुष संसार के यथार्थ स्वरूप को और उसमें उपलब्ध होने वाले विनश्वर सुखों को जानकर पूर्वोक्त तपश्चर्या में प्रवृत्त होता हुआ कर्मों की शीघ्र की निर्जरा कर देता है जिससे संसार के बंधनों को तोड़कर कैवल्य को प्राप्त करना उसके लिए सुकर हो जाता है । इसके अतिरिक्त 'त्तिं बेमि' का अर्थ पहले की भांति ही जान लेना, अर्थात् श्री सुधर्मा स्वामी अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहते हैं कि हे जम्बू ! जिस प्रकार मैंने श्रमण भगवान श्री वर्धमान स्वामी से श्रवण किया है, उसी प्रकार मैंने तुम्हारे प्रति कह दिया है। इसमें मेरी स्वतंत्र कल्पना कुछ भी नहीं है। इस प्रकार यह तपोमार्गनामक तीसवां अध्ययन समाप्त हुआ। त्रिंशत्तममध्ययनं सम्पूर्णम् उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ १९६ ] तवमग्गं तीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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