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________________ पश्चदशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [६५३ सयणासणपाणभोयणं , विविहं खाइमसाइमं परेसिं । अदए पडिसेहिए नियण्ठे, जे तत्थ न पउस्सई स भिक्खू ॥११॥ शयनासनपानभोजनं , विविधं. खाद्यं खाद्यं परैः। अददद्भिः प्रतिषिद्धः निम्रन्थो, ___ यस्तत्र न प्रदुष्यति स भिक्षुः ॥११॥ पदार्थान्वयः-सयण-शय्या आसण-आसन पाण-पान भोयणं-भोजन विविहं-नाना प्रकार के खाइम-खादिम साइमं-स्वादिम परेसिं-पर-गृहस्थों के अदए-न देने से पडिसेहिए-निषेध करने पर नियंठे-निर्ग्रन्थ जे-जो तत्थ-उनसे न पउस्सई-द्वेष नहीं करता स-वह भिक्खू-भिक्षु है । ___मूलार्थ-शय्या, आसन, पानी और भोजन तथा नाना प्रकार के खादिम और स्वादिम आदि पदार्थ, गृहस्थों के न देने से अपितु निराकरणनिषेध करने पर भी जो निर्ग्रन्थ द्वेष-क्रोध नहीं करता, वह भिक्षु है। ___टीका-इस गाथा में यह बतलाया गया है कि भिक्षा के लिये किसी गृहस्थ के घर में गये हुए साधु को वह गृहस्थ यदि भिक्षा न दे प्रत्युत तिरस्कारपूर्वक साधु को वहां से हटा देवे तो निम्रन्थ साधु उस पर किसी प्रकार का द्वेषभाव न करे। जैसे कि शय्या, आसन, भोजन, पानी तथा नाना प्रकार के खादिम–पिंड खजूरादि-पदार्थ तथा एला, लवंग आदि स्वादिम पदार्थों में से किसी पदार्थ की याचना करने पर साधु को गृहस्थ न देवे, किन्तु भर्त्सनापूर्वक वहां से चले जाने को कहे, ऐसी अवस्था में भी जो निम्रन्थ–साधु उस गृहस्थ से द्वेष नहीं करता, वही सच्चा भिक्षु है । तात्पर्य कि साधु का कर्तव्य-धर्म है कि वह अपने लिये प्रासुक वस्तु की गवेषणा करे और गृहस्थ के घर में जाकर अमुक आवश्यक वस्तु की याचना
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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