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________________ पञ्चदशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । क्षत्रियगणोग्रराजपुत्राः ब्राह्मणा भोगिका विविधाश्च शिल्पिनः । नो तेषां वदति श्लोकपूजां, [ ६५१ तत्परिज्ञाय परिव्रजेत् स भिक्षुः ॥९॥ पदार्थान्वयः—खत्तिय-क्षत्रिय गण उग्गरायपुत्ता- गण, उग्रकुल के पुत्र तथा राजपुत्र माहण-ब्राह्मण भोइय-भोगिकपुत्र य - और विविहा - नानाप्रकार के सिप्पिणो-शिल्पी लोग तेसिं- उनकी नो वयइ-न कहे सिलोग - श्लाघा और पूयं - पूजा - सत्कार तं - उसको परिन्नाय - जानकर परिव्वए - संयम मार्ग में चले स- वह भिक्खू - भिक्षु है । मूलार्थ — क्षत्रिय, गण, उग्रकुल, राजपुत्र, ब्राह्मण, भोगिक और नाना प्रकार के शिल्पी लोग, जो इनकी श्लाघा और पूजा को नहीं कहता, और उसको ज्ञ परिज्ञा से जानकर और प्रत्याख्यान परिज्ञा से छोड़कर संयम मार्ग में विचरता है, वही भिक्षु कहलाता है । टीका - इस गाथा में साधु को उक्त पुरुषों की श्लाघा करने और इनके सत्कार पुरस्कार में सम्मति देने का निषेध किया है। जैसे कि — क्षत्रिय राजा, मल्लादि समूह, · आरक्षकादि कुल तथा राजपुत्र, ब्राह्मण, भोगकुल के पुत्र और नाना प्रकार के शिल्पी लोग — सुत्तार आदि - इनकी श्लाघा [ ये बहुत अच्छा काम करने वाले हैं, खूब निशाना लगाते हैं, खूब युद्ध करते हैं ] और पूजा – सत्कार [ इनको यह उपहार देना चाहिए, इनका इस विधि से सत्कार करना चाहिए, इत्यादि ] आदि को न कहे अर्थात् उक्त प्रकार से इनके कार्यों का समर्थन न करे क्योंकि ऐसा करने पर पापादि कर्मों की अनुमोदना होती है । इस प्रकार जानकर जो साधु संयम मार्ग में विचरता है, वही सच्चा भिक्षु है । इसके अतिरिक्त इनकी श्लाघा पूजा के कथन से इनके परिचय की वृद्धि होती है । इनके संसर्ग में अधिक आना पड़ता है, जो कि दोषों का मूल है । इसलिए भी साधु के वास्ते इनका निषेध किया है । निम्नलिखित बातों का भी साधु को निषेध है । यथा
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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