SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 78
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [६४५ पश्चदशाध्य हिन्दीभाषाटीकासहितम् । पसलललललल ___ पदार्थान्वयः-पन्तं-निस्सार सयण-शय्या आसणं-आसन भइत्ता-सेवन करके सीउण्हं-शीत और उष्ण च-तथा विविहं-नानाप्रकार के दंसमसगं-दंश और मशक के परिषहों के प्राप्त होने पर अव्वग्गमणे-आकुलतारहित असंपहिढे-हर्षरहित जे-जो कसिणं-सम्पूर्ण परिषहों को अहियासए-सहन करता है स-वह भिक्खू-भिक्षु है । ___मूलार्थ-निस्सार शय्या और आसन को सेवन करके शीतोष्ण तथा नानाविध दंश और मशक परिषहों के प्राप्त होने पर जो हर्ष और विषाद को प्राप्त नहीं होता किन्तु शांतिपूर्वक सम्पूर्ण परिषहों को सहन कर लेता है, वह भिक्षु है। ___टीका- शय्या और आसन यदि इच्छानुकूल न मिले तो भी अर्थात् निस्सार शय्या, आसन और भोजन आदि का उपयोग करके शीत, उष्ण तथा दंश, मशक आदि परिषहों के उपस्थित होने पर भी जो मुनि व्याकुल नहीं होता तथा हर्ष और विषाद को प्राप्त नहीं होता किन्तु धैर्यपूर्वक सब परिषहों को सहन कर लेता है, वही भिक्षु है अर्थात् भिक्षु पद की शोभा को बढ़ाने वाला है। __ अब फिर इसी विषय का उल्लेख करते हैंनो सक्कइमिच्छई न पूयं, नोवि य वन्दणगं कुओ पसंसं । से संजए सुव्वए तवस्सी, सहिए आयगवेसए स भिक्खू ॥५॥ न सत्कृतिमिच्छति न पूजा, . नोऽपि च वन्दनकं कुतः प्रशंसाम् । स संयतः सुव्रतस्तपखी, सहित आत्मगवेषकः स भिक्षुः ॥५॥ पदार्थान्वयः-सक्कई-सत्कार को नो इच्छई-नहीं चाहता न पूर्य-न पूजा को चाहता है नोवि य-और न वन्दणगं-वन्दना की इच्छा रखता है कुओ-कहाँ से पंसंसं-प्रशंसा की इच्छा करे से-वह संजए-संयत और सुन्वए-सुव्रत तवस्सी-तंप
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy