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________________ ६६ ] सुल= सुन्दर प्राप्त हुआ है सुलद्धा=बहुत सुन्दर प्राप्त हुआ है सुलेहिं = त्रिशूलों सुवई - सोजाता है। सुचण= गरुड़ के सुविहिओ = विस्मित हुआ सुविसोज्झो = सुविशोध्य सुविण = स्वप्न का सुव्वयं = सुन्दर व्रतों वाला सुविणं स्वप्न विद्या सुहाव हे सुख के देने वाले सुहाव सुख के देने वाली उत्तराध्ययनसूत्रम् ह ६१६ ८२६ सुहिं- सुहद् सुही सुखी सुहे= सुख में सुहेसिणो-सुख के चाहने वाले सुहोप सुखोचित है सुहोइओ = सुखोचित है सुहोइयं = सुखोचित, सुखशील सूरा - शूरवीर सूरि एव = सूर्यवत् सूरम्मि= सूर्य के ७०५, ७१४ ६३३ ८७५ से= वह १०२३ १०७ ११२० ६४८ ६४५, ७२१ सुव्वर - सुव्रत सुसमाहियं = समाधि वाला सुसमाहिया = समाधि से युक्त सुसमाहिइंदिप = सुन्दर समाधि वाला और इन्द्रियों को वश में रखने वाला ६१६ सुसंभिया = अति संस्कृत सुसंकुडे भली प्रकार से संवृत किए हैं ६५४ सुसीला - सुन्दर स्वभाव वाली ६५७ सु-सुख साता ६१७, ७०५, ७३४, ८४४ सुहाणं सुखों का ८६७ [ शब्दार्थ-कोषः ६१०, ६२१, ६२५, ६४५, ८४४, ८४५ ८६६, ६०२, ६०३, ६०४, ६०८, ६१० ६१२, ६१७, ६२६, ६२६, ६४१, ६४५ ६५८, ६६३, ६६६, ६७१, ११०३ ११४०, ११४१ ६४५, ६६६, ६६७, ६६६ ६७०, ६७२ ७६४ सेओ=श्रेष्ठ सेअसंथारे - शय्या और संस्तारक पर ११०१ सेअं= शय्या को ७१४ से आए = शय्या ८६७ | सेणिया = हे श्रेणिक ! १००४ |सेणिओ = श्रेणिक सेणा - सेना से सेयं श्रेय है यदि ६३६ | सेव = सेवन करने वाला सेवमाणस्स = सेवन करते हुए सेवि = वह भी सेवित्ता = सेवन करने वाला सो= वह १०६८ ८६३ ८७२ ६११, ६२४, ७२६, ७२७, ७२८ ७३५, ७८७, ७८८, ७८६, ८१० ८४१, ८५२, ८६७, ८७३, ८७५ ६२५, ६३३, ६५५, ६६३, ६६८ ६८२, ६६२, ६६५, १०६० १०६१, १०६७, ११०७, ११३६ ८५५ सोआमणी - बिजली के समान ६५७ ६६४ | सोऊण=सुन करके ७३५, ६७५, ६६६ २६ | सोक्खा - सुख है ५६५ ८०१ सोगेण = शोक से ६७५ ८६७ सोच्चा-सुनकर ६६४, ६५७, ६२३, ६६५ ७६६ ११४१ ६४६ | सोढाओ = सहन की ८११ ७१५ ८१२ ६७५, ६७८, ६८०, ६८१, ६८३, ६८५ ७८४५ १०८०. ८५७ सोढाणि= सहन किये सोणियं = रुधिर जिस का ८६६, ८७३, ६१८ ६६ ६७६, हदंद ७१६ ६६७ १००३ ६६६, ६६७ ११२०
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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