SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्दशाध्ययनम् 1 हिन्दी भाषाटीकासहितम् । इमे च बद्धाः स्पन्दन्ते, मम हस्तमार्य ! आगताः । वयं च सक्ताः कामेषु, भविष्यामो पदार्थान्वयः - इमे- ये प्रत्यक्ष य - समुच्चयार्थ में है बद्धा-नियंत्रित किये हुए भी फन्दन्ति-अस्थिर स्वामी होने से चंचल हैं वयं हम च- फिर सत्ता - आसक्त हैं कामेसु - कामभोगों में जहा - जैसे इमे-ये भृगुपुरोहित आदि हो गये हैं उसी प्रकार भविस्सामो- - हम भी होंगे अर्थात् धर्म में दीक्षित होंगे । [ ६३१ थे ॥४५॥ मूलार्थ - कामभोग रक्षा करने पर भी चंचल हैं, हे आर्य ! जो कि मेरे और आपके हस्तगत हो रहे हैं और फिर हम इनमें आसक्त हो रहे हैं । अतः जैसे भृगुपुरोहित आदि इनको छोड़ गये हैं, उसी प्रकार हम भी छोड़ेंगे । टीका - देवी कमलावती फिर कहती है कि हे आर्य ! ये कामभोगादि अनेक प्रकार से सुरक्षित किये जाने पर भी अस्थिरस्वभावी होने से चंचलता को ही धारण किये हुए हैं, जो कि मेरे और आपके हस्तगत हो रहे हैं और हम इनमें आसक्त हो रहे हैं । परन्तु जैसे ये भृगुपुरोहित आदि इनको छोड़कर चले गये हैं, उसी प्रकार हम भी इनका परित्याग करके धर्म में दीक्षित होने के लिए जायँगे । प्रस्तुत गाथा में कामभोगों की अस्थिरता और उनके त्याग का प्रतिपादन किया गया है, जो कि मुमुक्षु पुरुष को सदा और सर्वथा उपादेय है। तथा उक्त गाथा में यद्यपि अकेला 'मम' शब्द है तथापि वह 'तव' का भी उपलक्षण है । एवं 'अज्ज' शब्द के 'आर्य' और 'अद्य' ये दोनों प्रतिरूप बनते हैं, सो इनका यथायोग्य अर्थ कर लेना चाहिए । सामिषं कुललं दृष्ट्वा, बाध्यमानं आमिषं सर्वमुज्झित्वा, विहरिष्यामि . पदार्थान्वयः - सामिसं - मांस के सहित कुललं अस्तु, अब शास्त्रकार इस बात का वर्णन करते हैं कि इन कामादि विषयों के त्यागने में ही सुख है, भोगने में नहीं । तथाहि — सामिसं कुललं दिस्स, बज्झमाणं आमिसं सव्वमुज्झित्ता, विहरिस्सामि निरामिसं । निरामिसा ॥४६॥ निरामिषम् । निरामिषा ॥ ४६ ॥ गृद्ध — पक्षी — को दिस्स
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy