SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 614
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ-कोषः ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [३९ ६१५ ७१६ ६२८ पवईशो-प्रवजित हो गया तथा ८६४ | पहीणपुत्तोमि-पुत्रों से हीन पवईयासंती-प्रव्रजित हुई ... १७६ पहीणसंथवे-त्याग दिया है संस्तव को , पव्वए-दीक्षित हो गया ७५०, ७६४, ६३३ | जिसने ६४६ पव्व-प्रव्रज्या, दीक्षा ... ६७५ | पहू-प्रभु है, वह ७६१ पध्वजम्-दीक्षा को ... .. ७५२ पहेणं-मार्ग से १४ पव्वया दीक्षित हो जा ..... ८४० पंखा-परों से पव्वयन्तो-प्रव्रजित होता हुआ १११८ पंच-पाँच १०३२, १०७१, १०८६, १०६५ पव्वेसी दीक्षित करने लगी ६७६ | पंचसमिओ-पाँच समितियों से समित पसजसि-आसक्त हो रहा है ७२६, ७३० पसत्थ-सुन्दर है . . ८५८ | पंचकुसीलसंवुड़े-पाँच कुशीलों से पसत्था-प्रशस्त ... ५६० संवृत-युक्त पसन्न प्रसन्न प्रतीत होता है. ७३७ | पंचसिक्खियो-पाँच शिक्षा रूप धर्म १०१८ पसमिक्ख-देख कर, विचार कर ५६१ पंचजिए-पांचों के जीतने पर १०३२ पसवई-प्रसूत हो गई. .... पंचसिक्खिओ-पाँच शिक्षा रूप धर्म १००७ प्पसाहिए-सँवारे हुए..... ६७७ पंचमहन्वयाणि-पाँच महाव्रतों को १३५ पसहित्ता वश करके ..... ७५७ .. ७७६ पसिणाण प्रश्नों से ७४७ पंचमहव्वय-पांच महाव्रतों से ८५३ पसीयन्तु प्रसन्न होवें । १०७० पंचमहव्वयधम्म-पांच महाव्रत रूप पसु पशु ६६६, ६६७ धर्म को ... १०६८ पसुचोमि मैं सो गया | पंचहा-पाँच प्रकार को १०७८ पसुबन्धा-पशुओं के वध-बन्धन पंचम-पाँचवाँ १०१२ के लिए ११२७ पंचलक्खणए-पाँच लक्षणों वाले ८०६ पसूया उत्पन्न हुए ५८२ | पंचमुट्ठीहिं-पंचमुष्टि से ६७२ प्पसूयाओ-प्रसूत से १०४२ पंचविहे पाँच प्रकार के ... ३६३ पसंसं प्रशंसा की इच्छा करे ६४५ पंचालेसु-पांचाल देश में ... ७६१ पसंसिप्रो-प्रशंसा के योग्य ६२४ पंजरेहि-पिंजरों में ६ ४.६६३ पहणे-हनता हुआ पंजलीडडा हाथ जोड़ कर १११५ पहसिओ-हास्ययुक्त अथवा विस्मित पंजलीहोडं-हाथ जोड़ कर ८७० " हुआ ८७३ | पंडिए-पंडित ६४१ पहाणमग्गं-प्रधानमार्ग-साधु धर्म को ६१६ | पण्डग-नपुंसक से ......६६६, ६६७ पहाण्वप्रधानवान् ६४६ पंडिया-पंडित ८६०, ६६५ पहाय-छोड़कर ६२०, ६४४, ६२३, ६२६ पंतकुलाई-जो प्रान्तकुल हैं उनमें . . ६५६ पहावन्तं भागते हुए को १०४६ / पाइओ-पिला दिया .. ८३२ पहीण-रहित ...६१४ पाउं-पीने के लिए ७०४,८०६, ८४६
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy