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________________ चतुर्दशाध्ययनम् -] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । पुरोहितं तं ससुतं सदारं, श्रुत्वाऽभिनिष्क्रम्य प्रहाय भोगान् । कुटुम्बसारं विपुलोत्तमं च, राजानमभीक्ष्णं समुवाच देवी ॥३७॥ पदार्थान्वयः—तं—उस पुरोहियं - पुरोहित को ससुयं पुत्रों के और सदारंअपनी स्त्री के साथ सोच्चा-सुनकर अभिनिक्खम्म - घर से निकलकर भोए - भोगों को पहाय-छोड़कर च-और कुटुंब - कुटुंब सारं - प्रधान धन विउलुत्तमं विस्तीर्ण और उत्तम तं—उसे ग्रहण करते हुए देखकर रायं - राजा को अभिक्खं वार वार देवीकमलावती समुवाय - कहने लगी । [ ६२३ मूलार्थ – संसार के समस्त कामभोगों का त्याग करके अपने पुत्रों और स्त्री के साथ घर से निकलकर दीक्षित हुए भृगु पुरोहित को सुनकर उसके धनादि प्रधान पदार्थों को ग्रहण करने की अभिलाषा रखने वाले राजा को, उसकी देवी - धर्मपत्नी कमलावती ने वार २ इस प्रकार कहा । . टीका - जब भृगुपुरोहित ने सांसारिक पदार्थों का त्याग करके अपनी स्त्री और पुत्रों के साथ प्रव्रज्या ग्रहण कर ली अर्थात् वे चारों ही दीक्षित हो गये तो इसकी सूचना पाकर वहाँ के राजा ने उसका कुटुम्ब और उसके घर में होने वाले विपुल धन आदि प्रदार्थों को अपने अधीन कर लेने का विचार किया क्योंकि भृगुपुरोहित जिस धनादि विपुल सामग्री का त्याग करके दीक्षित हुआ, वह प्रायः अधिकतर राजा के यहाँ से ही आई हुई थी । इसलिए उसने उसे ग्रहण करने में कोई दोष नहीं समझा, परन्तु उसकी कमलावती नाम की राणी को राजा का यह विचार उचित नहीं लगा । तब वह राजा से वार २ इस प्रकार कहने लगी । 1 कमलावती राणी ने राजा से जो कुछ कहा, अब उसी का वर्णन निम्नलिखित गाथा में किया जाता है । यथा 2 वंतासी पुरिसो रायं, न सो होइ पसंसिओ । माहणेण परिच्चत्तं, धणं आयाउमिच्छसि ॥३८॥
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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