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________________ avuANN/ Vvvvvvvvv १०७६ ] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [चतुर्विंशाध्ययनम् गति नहीं हो सकती। इसी लिए रात्रि में बाहर गमन करने की साधु के लिए आज्ञा नहीं है । तात्पर्य यह है कि ईर्या का समय दिन माना गया है। ईर्याशुद्धि में तीसरा कारण मार्ग है, जो कि उत्पथरहित है । तात्पर्य यह है कि उत्पथरहित जो पथ है, उसे मार्ग कहा है और उसी से गमन करना शास्त्रसम्मत अथच युक्तियुक्त है । क्योंकि उत्पथ में गमन करने से आत्मा और संयम इन दोनों की विराधना सम्भव है । अतः ईर्या का मुख्य मार्ग उत्पथ का त्याग है । इस सारे कथन का सारांश यह है कि संयमशील पुरुष के गमन में उक्त प्रकार से आलम्बन, काल और मार्ग की शुद्धि परम आवश्यक है। अब यतना के विषय में कहते हैं । यथादव्वओ खेत्तओ चेव, कालओ भावओ तहा। जयणा चउव्विहावुत्ता, तं मे कित्तयओ सुण ॥६॥ द्रव्यतः क्षेत्रतश्चैव, कालतो भावतस्तथा । यतनाश्चतुर्विधा उक्ताः, ता मे कीर्तयतः शृणु ॥६॥ पदार्थान्वयः-दव्वओ-द्रव्य से खेतओ-क्षेत्र से च-समुच्चय अर्थ में एवनिश्चय अर्थ में कालओ-काल से तहा-उसी प्रकार भावओ-भाव से जयणा-यतना चउन्विहा-चार प्रकार की वुत्ता-कही गई है तं-उसे कित्तयओ-कहते हुए मेमुझसे सुण-श्रवण कर। . मूलार्थ-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से यतना चार प्रकार की है। मैं तुमसे कहता हूँ, तुम सुनो। टीका-श्री सुधर्मा खामी अपने शिष्य जम्बू स्वामी से कहते हैं कि यतना के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ये चार भेद है अर्थात् इन भेदों से यतना चार प्रकार की कही है। मैं तुमसे कहता हूँ, तुम सुनो । तात्पर्य यह है कि यतना के इन चार प्रकार के भेदों को मैं तुम्हारे प्रति कहता हूँ ; तुम सावधान होकर श्रवण करो। कारण यह है कि आलम्बनादि चारों कारणों में से यतना प्रधान कारण है। यदि यतनापूर्वक ईर्या-गति-की जाय तो उसमें किसी प्रकार के भी विघ्न की आशंका नहीं रहती।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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