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________________ उत्तराध्ययनसूत्रम् - [ त्रयोविंशाध्ययनम् टीका- गौतम स्वामी कहते हैं कि हे मुने ! जिन पाशों से संसारी जीव बँधे हुए हैं मैं उन सर्व पाशों को तोड़कर तथा फिर उनसे बाँधा न जाऊँ इस आशय से उपाय द्वारा उनका समूल घात करके, मुक्तपाश और लघुभूत होकर इस संसार में अप्रतिबद्ध होकर विचरता हूँ । यहाँ पर 'उपाय' से सद्भूत भावना का निरन्तर अभ्यास अभिमत है । तथा — 'सव्वसो - सर्वश: ' यह 'सर्वान्' पद के स्थान पर अर्थात् उसी अर्थ में- प्रयुक्त हुआ है I १०३६ ] पूर्व की भाँति यह प्रश्न भी गुप्तोपमालंकार से वर्णित है । अतएव जब गौतम स्वामी इस प्रकार कह चुके तब जनता की हित बुद्धि से केशीकुमार उक्त प्रश्न के विषय में फिर पूछते हैं। यथा पासा य इइ के कुत्ता, केसी गोयममब्बवी । केसिमेवं बुवंतं तु, गोयमो इणमब्बवी ॥४२॥ पाशाश्चेति के उक्ताः, केशी 'केशिनमेवं ब्रुवन्तं तु गौतम इदमब्रवीत् ॥४२॥ पदार्थान्वयः–पासा–पाश के— कौन से बुत्ता - कहे गये है ? केसी - केशीकुमार 1. गोमं - गौतम के प्रति इह - इस प्रकार अब्बवी - बोले तु - तदनन्तर केसिं - केशीकुमार के बुवतं - बोलने से उसके प्रति गोयमो - गौतम इणं - इस प्रकार अब्बवी - बोले मूलार्थ -- वे पाश कौन से कहे हैं, इस प्रकार केशीकुमार के बोलने पर गौतम स्वामी कहने लगे । टीका - केशीकुमार मुनि ने जनता के बोध के लिए फिर यह पूछा कि - हे गौतम ! वें पाश क्या हैं ? जिनसे ये संसारी जीव बँधे हुए हैं। आप उससे किस प्रकार मुक्त हुए ? जिससे कि इस समय सुखपूर्वक विचर रहे हो इत्यादि । यहाँ इतना ध्यान रहे कि इस प्रकार के स्पष्टीकरण से ही साधारण जनता को सुखपूर्वक बोध हो सकता है, तथा जनता के सन्मुख उन्हीं प्रश्नोत्तरों की आवश्यकता है जिनसे उनको विशेष लाभ पहुँचने की संभावना हो सके। कई एक प्रतियों में उक्त गाथा के तृतीय चरण का पाठ ' - 'केसिमेयं बुवंतं तु' इस प्रकार का भी देखा जाता है । गौतममब्रवीत् ।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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