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________________ प्रयोविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [ १०२१ टीका-केशीकुमार के पूर्वोक्त प्रश्न का उत्तर देते हुए गौतम स्वामी कहते है कि जिसमें जीवादि पदार्थों का विशेषरूप से निर्णय किया जाता है ऐसे धर्मतत्त्व का सम्यक् ज्ञान प्रज्ञा–बुद्धि द्वारा ही किया जा सकता है । गौतम स्वामी के इस कथन का आशय यह है कि केवल वाक्य के श्रवण मात्र से उसके अर्थ का निर्णय नहीं हो सकता । किन्तु वाक्य श्रवण के अनन्तर उसके अर्थ का विनिश्चयविशिष्ट निर्णय-बुद्धि करती है। अर्थात् बुद्धि के द्वारा ही वाक्यार्थ का यथार्थ निर्णय होता है [प्रज्ञा–बुद्धिः, समीक्षते-सम्यक् पश्यति धर्म तत्त्वम्-धर्म परमार्थम् , तत्वानां जीवादीनां विनिश्चयो—विशिष्ट निर्णयात्मको यस्मिंस्तथा । इदमुक्तं भवति न वाक्यश्रवणमात्रादेव वाक्यार्थ निर्णयो भवति किन्तु प्रज्ञावशात्' इति वृत्तिकारः ] तथा-धर्म शब्द का बिंदु-'धम्म' अलाक्षणिक है। __ अब इसी बात को विस्पष्ट करते हुए कहते हैं । यथा-. पुरिमा उज्जुजड्डा, उ, वक्कजडा य पच्छिमा। मज्झिमा उज्जुपन्ना उ, तेण धम्मे दुहा कए ॥२६॥ पूर्वे ऋजुजडास्तु, वक्रजडाश्च पश्चिमाः । मध्यमा ऋजुप्रज्ञास्तु, तेन धर्मो द्विधा कृतः ॥२६॥ . . पदार्थान्वयः-पुरिमा-पहले, प्रथम तीर्थंकर के मुनि उज्जुजड्डा-ऋजुजड़ थे उ-जिससे पच्छिमा-पीछे के-चरम तीर्थंकर के मुनि वक्कजडा-वक्रजड़ हैं य-और मज्झिमा-मध्य के-मध्यम तीर्थंकरों के मुनि उज्जुपन्ना-ऋजुप्राज्ञ हैं तेण-इस हेतु से धम्मे-धर्म दुहा-दो भेदवाला कए-किया गया उ-प्राग्वत् । . मूलार्थ-प्रथम तीर्थकर के मुनि ऋजुजड़ और चरम तीर्थकर के मुनि चक्रबड़ है किन्तु मध्यम तीर्थंकरों के मुनि अजुप्राज्ञ होते हैं। इस कारण से धर्म के दो मेद किए गये। टीका-धर्मतत्त्व का निर्णय, प्रज्ञा द्वारा ही होता है, इस विषय को स्पष्ट करते हुए गौतम स्वामी, केशीकुमार के पूर्वोक्त प्रश्न का उत्तर इस प्रकार देते हैं। धर्म .. के दो भेद क्यों किये गये ? इसका कारण अधिकारियों की बुद्धि का तरतम भाव है
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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