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________________ त्रयोविंशाभ्यंयनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [ २०१५ 1 टीका - जिस समय उस तिन्दुक बन में वे दोनों ऋषि तत्त्वनिर्णय के लिए एकत्रित हुए उस समय श्रावस्ती नगरी में भी उनके समागम का पता लग गया । आम लोगों में यह बात फैल गई कि शास्त्रार्थ के लिए दोनों ऋषि तिन्दुक बन में एकत्रित हो रहे हैं । इस समाचार को सुनकर लोग हजारों की संख्या में वहाँ पर जमा हो गये। उनमें बहुत से पाखण्डी — पाखण्डव्रतों के धारण करनेवाले लोग, और कौतुकी — कुतूहल के देखनेवाले — लोग भी उपस्थित थे । कौतुकी वे लोग कहे जाते हैं जो केवल उपहास्य करनेवाले हों। किसी २ प्रति में 'कोउगासिया' के स्थान पर 'कोउगामिया' ऐसा पाठ भी है, उसका अर्थ है, कौतुकी और मृग, अर्थात् मृग पशु की तरह अज्ञानी अपने हित और अहित से अनभिज्ञ । यदि कोई ऐसी शंका करे कि जब गाथा में पाखण्डी और कौतुकी आदि लोगों के नाम का उल्लेख किया है तो फिर श्रावक लोगों के नाम का उल्लेख क्यों नहीं किया ? इसका समाधान यह है कि पाखण्डी कहने से अन्य दार्शनिकों का ग्रहण है और कौतुकी कहने से धर्म से पराङ्मुख केवल • उपहास्यप्रिय मनुष्यों का ग्रहण • अभिमत है तथा गृहस्थ कहने से जिज्ञासु और श्रावक लोगों का ग्रहण किया गया है। इस प्रकार शब्दों के देखने से अर्थ का निश्चय हो जाता है। कारण यह है कि जहाँ पर धर्माधिकार का विधान है वहाँ पर प्रायः 'गिहिधम्म- गृहस्थधर्म' इस प्रकार का तो उल्लेख मिलता है परन्तु 'सावगधम्म-श्रावक धर्म' इस प्रकार का उल्लेख देखने में नहीं आता। इसलिए इसी नियम को दृष्टिगोचर रखकर यहाँ पर भी गृहस्थ शब्द से श्रावक का ग्रहण किया जा सकता है । इस मनुज समुदाय के अतिरिक्त वहाँ पर और कौन २ आये अब इस विषय में कहते हैं } 1 " देवदानवगन्धव्वा जक्खरक्खसकिन्नरा अदिस्साणं च भूयाणं, आसी तत्थ समागमो ॥२०॥ देवदानवगन्धर्वाः यक्षराक्षसकिन्नराः अदृश्यानां च भूतानाम्, आसीत् तत्र समागमः ॥२०॥ पदार्थान्वयः – देव - देवता दाखव-दानव गन्धव्वा - गन्धर्व जक्ख-यक्ष "
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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