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________________ १००० ] उत्तराध्ययन सूत्रम् - 1 अवधिज्ञानश्रुताभ्यां बुद्धः शिष्यसंघसमाकुलः ग्रामानुग्रामं रीयमाणः, श्रावस्तीं नगरीमागतः ॥३॥ पदार्थान्वयः—– ओहिनाण-अवधिज्ञान सुए - श्रुतज्ञान से बुद्धे-बुद्ध हुआ सीससंघ - शिष्यसमुदाय में समाउले - व्याप्त — आकीर्ण गामाणुगामं - प्रामानुग्राम रीयते - विचरते हुए सावस्थि - श्रावस्ती नामा नगरिम् - नगरी में आगए - पधारे । मूलार्थ - अवधि और श्रुतज्ञान से पदार्थों के स्वरूप को जानने वाले, अपने शिष्यपरिवार को साथ लेकर ग्रामानुग्राम विचरते हुए वह केशीकुमार किसी समय श्रावस्ती नामा नगरी में पधारे। [ त्रयोविंशाध्ययनम् टीका - वह श्रीकेशीकुमार श्रमण जो कि मति, श्रुत और अवधिज्ञान के द्वारा पदार्थों के स्वरूप को यथावत् जानते हैं - अपने शिष्यों के साथ प्रामानुग्राम विचरते हुए अर्थात् धर्मोपदेश के द्वारा परोपकार करते हुए श्रावस्तीनामा नगरी में 1 ar | यद्यपि मूलपाठ में केवल, अवधि और श्रुतज्ञान का ही उल्लेख किया है, मतिज्ञान का उसमें निर्देश नहीं किया, परन्तु नन्दी सिद्धान्त का कथन है कि जहाँ पर श्रुतज्ञान होता है, वहाँ पर मतिज्ञान अवश्यमेव होता है और जहाँ पर मतिज्ञान है, वहाँ पर श्रुतज्ञान भी है। इसलिए एक का निर्देश किया है। जैसे पुत्र का नाम निर्देश करने से पिता का ज्ञान भी साथ ही हो जाता है, इसी प्रकार एक ग्रहण से दोनों का ग्रहण कर लेना शास्त्रकार को सम्मत है। श्रावस्ती नगरी में वे जिस स्थान पर ठहरे, अब उसी का वर्णन करते हैं— तिन्दुयं नाम उज्जाणं, तम्मी फासुए सिजसंथारे, तत्थ तिन्दुकं प्रासुके नामोद्यानं, तस्मिन् शय्यासंस्तारे, तत्र नगरमण्डले । वासमुवागए ॥४॥ नगरमण्डले । वासमुपागतः ॥४॥ पदार्थान्वयः – तिन्दुयं - तिंदुक नाम-नाम वाले उखाणं- उद्यान तम्मी - उस नगरमण्डले - नगर के समीप में फासुए निर्दोष सिज - शय्या संथारे - संस्तारक पर तत्थ-उस उद्यान में वासम्-निवास — अवस्थान को उवागए - प्राप्त हुए ।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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